जिंदगी में मौज लो, भजन बुढ़ापे में कर लेंगे!

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
जिंदगी में मौज लो, भजन बुढ़ापे में कर लेंगे!

अगर आप बड़े-बूढ़ों के बीच बैठ कर उनकी बातें सुनेंगे तो आपको समझ आएगा कि वे केवल संसार की ही बातें करते हैं। उनकी चर्चा में केवल उनके परिवार, संपत्ति, दुख और सांसारिक संकटों से संबंधित बातें ही होती हैं। उनको सपने भी इन्हीं सांसारिक विषयों के आते हैं। और जब मृत्यु का समय आता है, तो उस समय भी उनका चिंतन इन्हीं चीज़ों का बनता है। फिर क्या, यमदूत उन्हें पीट-पीट कर अपने साथ ले जाते हैं।

बूढ़े लोग सांसारिक विषयों के बारे में बात करते हुए

जो निरंतर मेरा ध्यान करता है, वह निश्चित मुझ तक पहुंचता है

कुछ ऐसे लोग होते हैं जो सोचते हैं कि बुढ़ापे में भजन कर लेंगे। अगर आपने पूरा जीवन विषयों का चिंतन किया है तो बुढ़ापे में भजन कैसे हो जाएगा? अगर आपको बुढ़ापे में पिस्तौल दे दी जाए और कहा जाए कि आप गोली निशाने पर चलाइए, क्या आप कर पाएँगे? नहीं! आपको गोली भरना नहीं आएगा, गोली चलाना भी नहीं आएगा, क्योंकि आपने कभी इसका अभ्यास ही नहीं किया। लेकिन जो आर्मी में हैं, वो आँख पर पट्टी बांध कर भी लक्ष्य पर गोली चला लेंगे। क्योंकि उन्होंने इसका अभ्यास किया है। साधारण लक्ष्य भेदन की बात भी बिना अभ्यास के नहीं हो सकती, फिर अंतर लक्ष्य भेदन, समस्त इन्द्रियों को एकाग्र करके और मन को समाहित करके प्रभु के चरणों में लगा देना, यह भला बिना अभ्यास के कैसे हो सकता है?

प्रारंभिक जीवन से ही भजन का अभ्यास करें

प्रारंभिक जीवन से ही भजन का अभ्यास करें

अगर कोई जवान साधक चूक भी कर रहा है तो यह कोई निंदनीय विषय नहीं, बल्कि प्रशंसनीय है। मन को प्रभु में लगाने के लिए अभ्यास चाहिए। प्रहलाद जी ने अपने मित्रों को पाँच साल की उम्र में उपदेश दिया था। भजन का अभ्यास कुमार अवस्था से ही करना चाहिए। अगर आप सोचते हैं कि आप घर गृहस्थी में रहकर जीवन भर भोग भोगेंगे और बाद में वैरागी हो जाएँगे तो ये ग़लत है। अगर आपने बुढ़ापे में वैराग्य ले भी लिया तो एक महीने से भी कम में आपको वापस आना ही पड़ेगा। क्योंकि मन को बदलना इतना आसान नहीं है, उसके लिए प्रारंभिक जीवन से ही अभ्यास चाहिए। अगर आप ख़ुद से प्रयास नहीं करेंगे तो माया आपको प्रभु की शरण लेने पर मजबूर कर ही देगी। साम, दाम, दंड, भेद, कैसे भी हो, आपको नकली से असली बना ही दिया जाएगा। अच्छा तो यही है कि हम स्वयं ही यौवन अवस्था से ही अपनी चित्तवृत्ति को प्रभु में लीन कर दें। भले ही आप गृहस्थी में रहें, लेकिन भजन के अभ्यास से युक्त रहें।

छोटी उम्र से ही भक्ति का अभ्यास करने पर सुविचार

जो कहते हैं कि बुढ़ापे में भजन हो जाएगा, क्या वो ख़ुद भजन करते हैं?

लोगों को भ्रम बैठ गया है कि अभी तो हमारी खेलने और खाने की अवस्था है, भजन की अवस्था नहीं है। भजन की अवस्था कौनसी है? कोई बता सकता है? कोई भी ऐसी अवस्था नहीं है जिसमे भजन ख़ुद से हो और राग (आसक्ति) नष्ट हो जाए। आप बाहर का भेष परिवर्तित कर सकते हैं, पर चित्त का परिवर्तन तो अभ्यास से ही होगा। जीवन भर अगर आपने वैराग्य का अभ्यास नहीं किया, घर में रहते हुए राग रहित होने की चेष्टा नहीं की, भजन की चेष्टा नहीं की, हरि शरणागत नहीं रहे, तो ऐसे भ्रम में ना रहें कि आपका तुरंत कोई परिवर्तन हो जाएगा।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज बाल्यकाल से ही भजन करने पर मार्गदर्शन करते हुए

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