एकादशी व्रत: क्या करें, क्या ना करें? जानें एकादशी व्रत की कथा और फल!

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
एकादशी व्रत की कथा

सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ एकादशी व्रत है। समस्त विश्व में कोई ऐसा नहीं जो एकादशी व्रत की महिमा न जानता हो। सतयुग में शंखासुर राक्षस का मुर नामक दैत्य पुत्र था। शंखासुर को भगवान विष्णु ने मार डाला और इससे मुर को बड़ा दुख हुआ। इसका बदला लेने के लिए वो वन में जाकर घोर तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या से ब्रह्मा जी संतुष्ट हुए और विवश होकर उन्होंने उसे वरदान दिया। उसने यह वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई भी देवता, दैत्य, मुनि, मनुष्य, शिव, या विष्णु जी मार न सके। यह वरदान पाकर मुर बलवान हो गया।

एकादशी की कथा में मुर राक्षस

एकादशी की कथा

वरदान मिलने के बाद मुर दैत्य जिस भी लोकपाल के पास जाता, उसे परास्त कर देता। उसने समस्त लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने सब लोकपाल पदों पर दैत्यों को नियुक्त कर दिया। उसने सभी ब्राह्मणों, भक्तों और गायों को सताना, मारना और उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। दुखी होकर सभी देवता भगवान शंकर जी के पास गए और उनसे रक्षा करने की याचना की ।

शंखासुर राक्षस के अपराजित होने से एकादशी का जन्म हुआ

भगवान शंकर जी ने सबको आश्वासन दिया और उन्होंने देवताओं के साथ मिलकर मुर को युद्ध के लिए ललकारा। इसके बाद बहुत भयंकर युद्ध हुआ लेकिन युद्ध में विजय मुर दैत्य की ही हुई क्योंकि उस पर ब्रह्मा जी का आशीर्वाद था। दैत्यों की बढ़ती सेना देख देवताओं ने भगवान श्री विष्णु का स्मरण किया और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की। भगवान श्री विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र मुर दैत्य पर छोड़ दिया लेकिन ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त होने के कारण सुदर्शन जी ने मुर की परिक्रमा की और भगवान के हाथ में वापस आ गए। वरदान की मर्यादा रखने के लिए सुदर्शन चक्र ने मुर को नहीं मारा। हाहाकार मच गया, सब सोचने लगे अब क्या होगा।

एकादशी का जन्म: विष्णु जी की लीला

सब देवता भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे। विष्णु जी युद्ध छोड़ कर भाग गए, और मुर ने गदा लेकर भगवान का पीछा किया। भगवान भागकर बद्रिका आश्रम में गए और एक गहरी एकांतिक गुफा में जा छिपे। मुर ने गुफा में प्रवेश करके दहाड़ लगाई कि कहाँ है भगवान विष्णु। भगवान थक गए थे, उन्हें नींद आने लगी और वो सो गये। उसी समय भगवान के हृदय से कन्या रूप में एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई। उसने अपने परम तेज एवं दिव्य शक्ति से एक क्षण में मुर दैत्य का सेना सहित नाश कर दिया। देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की और उस देवी की स्तुति की। स्तुति सुनकर श्री भगवान जाग गए।

एकादशी की जन्म कथा

भगवान विष्णु ने देवताओं से पूछा कि आप सब किसकी स्तुति कर रहे हो? क्या हुआ? देवता बोले, प्रभु आपके ह्रदय से यह कन्या प्रकट हुई और इसने सब दैत्यों का नाश कर दिया और मुर दैत्य को भी मार दिया। भगवान ने कहा कि यह कन्या जो मेरे ह्रदय से प्रकट हुई है, यह एकादश तिथि को प्रकट हुई है इसलिए इस कन्या का नाम एकादशी होगा। प्रभु ने एकादशी को अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की स्वामिनी होने का भी आशीर्वाद दिया। प्रभु ने एकादशी से कहा, तुम में इतनी सामर्थ्य होगी कि जो तुम्हारा व्रत रखेंगे, उनके चरणों में मोक्ष लोटेगा। जो एकादशी का उपवास करेगा वो निष्पाप हो जाएगा, वो बड़ा पुण्यात्मा होगा, उसे गोविन्द के चरणों की भक्ति प्राप्ति होगी। विष्णु जी ने कहा जो तुम्हारा व्रत करेगा, वो जो चाहेगा उसकी पूर्ति हो जाएगी। और यदि कोई किस भी चीज़ की कामना नहीं करेगा, तो उसे मेरी भक्ति प्राप्त हो जाएगी।

एकादशी व्रत के नियम

एकादशी के दिन किन चीजों से बचना चाहिए?

एकादशी व्रत के नियम तीन दिनों के लिए होते हैं। एकादशी का व्रत दशमी से शुरू होकर द्वादशी को पूर्ण होता है।

दशमी के नियम

दशमी के दिन यह दस कार्य ना करें:

  1. कांसे (ब्रॉन्ज) के बर्तन में कुछ न खाएँ
  2. मसूर की दाल न खाएँ 
  3. मांस का स्पर्श भी न करें (खाने की तो बात जाने दो) 
  4. चना न खाएँ 
  5. कोदो (वरागु चावल) न पाए
  6. कोई साग न खाएँ 
  7. शहद न खाएँ 
  8. किसी दूसरे के द्वारा दिया हुआ भोजन न खाएँ 
  9. दो बार भोजन न खाएँ 
  10. मैथुन न करें

एकादशी के नियम

एकादशी के दिन यह ग्यारह कार्य न करें:

  1. जुआ न खेलें और न किसी को खेलता देखे। अगर एक बार दृष्टि पड़ जाए, तो तुरंत उसे हटा लें
  2. नींद न ले
  3. पान न खाएँ
  4. दातुन न करें
  5. दूसरे की निंदा और चर्चा न करें। अधिकतर मौन धारण करें।
  6. किसी की चुगली न करें  
  7. किसी की चोरी न करें 
  8. किसी की हिंसा न करें 
  9. किसी के साथ मैथुन ना करें 
  10. क्रोध न करें 
  11. झूठ न बोलें 

एकादशी के दिन क्या करें?

जल्दी उठो नहा लो
  1. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके भगवत् प्रसन्नता के उद्देश्य से व्रत का संकल्प करें। जो गुरु प्रदत्त उपासना है, उसे करें।
  2. निरंतर भगवत् स्मरण करते हुए, दिन में केवल एक बार थोड़ा सा फलाहार पाएँ।
  3. कोशिश करें कि सिर्फ़ जल पीकर रहें, नहीं तो थोड़ी मात्रा में एक बार फलाहार करें।
  4. रात्रि भर जागरण और कीर्तन करें।
एकादशी पर सादा फलाहार खाएं

द्वादशी के नियम 

द्वादशी के दिन यह बारह कार्य न करें:

  1. कांसे के बर्तन में भोजन न खाएँ
  2. माँस का स्पर्श भी न करें (खाने की तो बात जाने दो)
  3. मदिरा न पिएँ 
  4. शहद न खाएँ 
  5. तेल का बना पदार्थ न खाएँ
  6. झूठ न बोलें 
  7. ज़्यादा व्यायाम न करें 
  8. प्रदेश गमन न करें 
  9. दोबारा भोजन न करें 
  10. मैथुन न करें 
  11. जो स्पर्श करने योग्य नहीं उनका स्पर्श न करें
  12. मसूर की दाल न खाएँ

द्वादशी के दिन क्या करें?

द्वादशी के दिन पूर्वज सेवा, पूजा आदि करके पहले श्री हरी का चरणामृत लें और कम से कम एक साधु को भोजन करवाएँ और फिर स्वयं भोजन खाएँ।

एकादशी व्रत का फल

एकादशी के दिन ध्यान और भगवान का स्मरण करें

एकादशी का व्रत रखने वाले के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। और यदि कोई निष्काम रहे तो उसे भगवान की प्रसन्नता प्राप्त होती है, अर्थात् उसकी भक्ति वर्धमान होती है।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज एकादशी व्रत की महिमा सुनाते हुए

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