पांडवों को हर विपत्ति में श्री कृष्ण की मदद मिलती थी। दुर्योधन ने षड्यंत्र रचा और दुर्वासा ऋषि को उनके दस हज़ार शिष्यों के साथ पांडवों के पास वनवास में भेजा। महापुरुषों को प्रसन्न करना बहुत कठिन होता है, और जो भगवान से अनुराग नहीं रखते, वे संतों के संग का लाभ नहीं उठा पाते। दुर्योधन ने चार महीनों तक दुर्वासा ऋषि की सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर दुर्वासा ऋषि ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। दुर्योधन ने इसे पांडवों के नाश का उचित अवसर समझा। उसे पता था कि अगर पांडव दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों को तृप्त नहीं कर पाए, तो वे क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे देंगे। उसने दुर्वासा ऋषि से कहा कि मेरे बड़े भाई युधिष्ठिर महाराज वनवास में हैं, आप अपने शिष्यों के साथ वहाँ जाएँ और आतिथ्य स्वीकार करें। उसने आग्रह किया कि जब द्रौपदी भोजन कर चुकी हों, तभी आप वहाँ जाएँ। दुर्वासा ऋषि ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
दुर्वासा ऋषि का आगमन और द्रौपदी का अक्षय पात्र
द्रौपदी को सूर्य देव से अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था, जो तब तक असीमित भोजन प्रदान करता था जब तक द्रौपदी स्वयं भोजन न कर लें। एक दिन, जब द्रौपदी ने भोजन करके अक्षय पात्र धोकर रख दिया, उसी समय दुर्वासा ऋषि अपने दस हज़ार शिष्यों सहित पांडवों के पास पहुँचे। पांडवों ने उनका स्वागत किया और कहा, “कृपया आप हमारे यहाँ भोजन ग्रहण करें।” दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों ने न्योता स्वीकार किया और वे भोजन से पहले स्नान करने के लिए यमुना नदी पर चले गए।
युधिष्ठिर महाराज ने द्रौपदी से पूछा, “क्या आपने भोजन कर लिया है?” द्रौपदी ने उत्तर दिया, “हाँ, मैंने भोजन कर लिया है और अक्षय पात्र को धोकर रख दिया है।” यह सुनकर युधिष्ठिर महाराज चिंतित हो गए। द्रौपदी ने उनसे पूछा कि उन्हें क्या हुआ। युधिष्ठिर महाराज ने कहा, “बाहर दुर्वासा ऋषि और उनके दस हज़ार शिष्य भोजन के लिए आने वाले हैं। अगर वे तृप्त न हुए, तो क्रोधित होकर हमें श्राप दे सकते हैं।”
श्री कृष्ण का चमत्कार
द्रौपदी ने कहा, “आप एक पात्र पर इतना विश्वास कर रहे हैं, लेकिन पूरे संसार का पालन करने वाले श्री कृष्ण हमारे साथ हैं। वे हमें इस संकट से अवश्य बचाएँगे।” फिर द्रौपदी ने श्री कृष्ण को आर्त भाव से पुकारा, “हे श्री कृष्ण!” श्री कृष्ण तुरंत ही मुस्कुराते हुए वहाँ प्रकट हो गए। उन्होंने आते ही कहा, “मुझे बहुत भूख लगी है, मुझे कुछ खाने को दो।” द्रौपदी ने कहा, “प्रभु, मैंने आपको इसी समस्या के समाधान के लिए पुकारा है, लेकिन इस समय यहाँ कुछ भी खाने को नहीं है। मैंने अक्षय पात्र को धोकर रख दिया है।” श्री कृष्ण ने कहा, “पहले मुझे खाने को कुछ दो, बाकी बातें बाद में करेंगे।” द्रौपदी ने कहा, “प्रभु, मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि आप मुझसे कुछ खाने को माँग रहे हैं, लेकिन यहाँ अब कुछ भी उपलब्ध नहीं है।” फिर भी, श्री कृष्ण ने उन्हें अक्षय पात्र लाने को कहा।
श्री कृष्ण ने उस धुले हुए अक्षय पात्र से अन्न का एक दाना निकाल लिया। श्री कृष्ण सर्व समर्थ हैं, वे कुछ भी करने में सक्षम हैं। कोई साधारण स्त्री भी जूठा पात्र इस तरह नहीं धोएगी कि उसमें कुछ अन्न शेष रह जाए, और द्रौपदी तो परम पतिव्रता और यज्ञ से प्रकट हुई देवी थीं। साथ ही, सूर्यदेव ने जब द्रौपदी को अक्षय पात्र दिया था, तो कहा था कि उनके भोजन खा लेने के बाद उस दिन के लिए कोई भी अन्न उसमें नहीं बचेगा। यह सब श्री कृष्ण का एक चमत्कार था, जो पांडवों की रक्षा के लिए हुआ। श्री कृष्ण ने वह अन्न का दाना खाया और कहा, “इससे तो पूरा विश्व तृप्त हो जाएगा।”
दुर्वासा ऋषि की तृप्ति और वरदान
जैसे ही श्री कृष्ण ने वह अन्न का दाना खाया, दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों के पेट भर गए। उन्होंने फिर भीम से कहा कि जाकर दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों को भोजन के लिए बुला लाओ। भीम गए और दुर्वासा ऋषि से कहा कि “आप सबके लिए स्वादिष्ट भोजन तैयार है, कृपया आइए।” दुर्वासा ऋषि ने कहा, “हम सबका पेट इतना भर गया है कि अब एक घूँट पानी की भी जगह नहीं है।” ऋषि ने कहा, “मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हूँ, कोई वरदान माँगो।” भीम ने कहा, “दुर्योधन ने आपको जिस भाव से यहाँ भेजा हो, वही परिणाम उसे प्राप्त हो।” दुर्वासा ऋषि ने कहा, “ऐसा ही होगा।”
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज