हम ऐसा सोचें कि दो-चार लाख छल कपट से कमा लें और उसमें से कुछ पैसा संतों की सेवा में लगा दें, तो वह धन शुद्ध हो जाएगा, यह ग़लत सोच है। इससे आपका एक और अपराध बन जाएगा और पाप बढ़ जाएगा। संत भगवत् मार्ग के पथिक हैं, यदि वो पवित्र भोजन पाएँ और पवित्र वस्त्र आदि का सेवन करें तो उनका भजन बढ़ता है। लेकिन यदि छल कपट से प्राप्त अन्न या पैसा उनके पास गया, तो उनकी बुद्धि पाप आचरणों में लगेगी। इस से दान करने वाला तो गिरेगा ही साथ ही उन संतों के भजन को भी गिरायेगा, जिससे दोगुना अपराध बन जाता है। इस आप और संत, दोनों ही अपने पथ से गिर जाते हैं।
दान के विषय में शास्त्र क्या कहते हैं?
शास्त्रों में धर्म पूर्वक कमाए हुए धन के दान की बात कही गई है। जो लोग सलाह देते हैं कि कैसे भी धन कमाओ और उसका दशांश (दसवाँ हिस्सा) दान कर दो, तो ये केवल कोरी ठगाई है। कोई धर्म सिद्धांत ऐसा आदेश नहीं करता। ऐसा धन कमाने वाला और उसको वाणी से यह सलाह देने वाला, दोनों ही ठग हैं। धर्म पूर्वक कमाए हुए धन से बनाई हुई दो रोटी में से आधी रोटी दूसरे को देना और शेष से अपने परिवार का पोषण करना, ये वास्तविक दान है। ये आपका मंगल करेगा और जिस को दान दिया, उसके सद्विचार प्रकट करेगा।
क्या छल कपट करना आवश्यक है?
हर वस्तु का दाम सरकारी विभाग से निश्चित है और हर बेची जाने वाली चीज़ पर मुनाफ़े की गुंजाइश रख कर ही दाम लिखे जाते हैं। तो बिना छल कपट के जीना संभव है। आपका जीवन सरल होगा लेकिन आप स्वस्थ रहेंगे। अगर छल कपट करके आपने ज़्यादा सुविधाएँ इकट्ठा कर लीं, तो शायद आपके पास ज़्यादा भोग सामग्री होगी लेकिन बुद्धि ठीक नहीं रहेगी, आपके जीवन में चैन नहीं रहेगा और आपका हृदय हमेशा जलता रहेगा।
बेईमानी करके केवल आपका समय नष्ट होगा। आप कई साल तक कड़ी मेहनत करके धन एकत्रित करेंगे, लेकिन वो किसी ना किसी वजह से आपके हाथ से निकल जाएगा। अंत में आपके पास कुछ नहीं बचेगा और आपको पश्चाताप ही होगा। अगर सत्य के मार्ग पर चलेंगे, तो शायद आपको धन एकत्रित करने में थोड़ा ज़्यादा समय लगे, लेकिन आपका परिवार सुखी और स्वस्थ रहेगा।
अगर आपने बेईमानी करके धन कमाया, तो वो आपके जीवन में कहीं ना कहीं ऐसी स्थिति पैदा कर देगा कि शायद आपकी निंदा होगी, आपका या परिवार में किसी का शरीर रोग से ग्रसित हो जाएगा और अंत में आपके हाथ में कुछ नहीं रह जाएगा। इसलिए ग़लत आचरण करने से बचें।
आप धर्म से चलें, प्रभु आपको सबसे बड़ा धनी बना देंगे!
अगर आप धर्म से चलेंगे तो आपको हमेशा गलती होने का डर बना रहेगा। इससे आप ग़लत काम करने से बचेंगे और आपकी दुर्गति (नर्क प्राप्ति) नहीं होगी। धर्म से चलना बड़ा कठिन है। आपको आपके आस-पास आपसे ज़्यादा सक्षम और धनी लोग दिखाई देंगे क्योंकि वो बेईमानी करके धन कमाते हैं। आपका मन आपको उनसे ईर्ष्या करके ग़लत कार्य करने पर प्रेरित भी करेगा। पर सच मानिए, ग़लत तरीक़े से कमाए धन से अंत में विनाश ही होता है। धर्म पूर्वक प्राप्त धन से आप शायद एक सादा जीवन जिएँगे लेकिन आप खुश और स्वस्थ रहेंगे।
हमें कोई ठग ले, कोई बात नहीं, पर हम किसी को नहीं ठगेंगे। इससे प्रभु आपके ऊपर प्रसन्न रहेंगे। दूसरे भले ही पैसे पर दृष्टि रखें, आप केवल प्रभु की तरफ़ दृष्टि रखें। और जब प्रभु आपकी तरफ़ दृष्टि कर देंगे, तो आप सबसे बड़े धनी बन जाएँगे। जिसका हृदय विशाल हो जाता है, वह सबसे बड़ा धनी हो जाता है। वो आनद से रहता है, उसे कोई चिंता नहीं होती।
धर्मो रक्षति रक्षितः
यदि आपको एक नियत धन राशि मिलनी है, तो वो बिना प्रयास के ही आपके पास आ जाएगी क्योंकि वह पूर्व निश्चित है। सुख-दुख हमारे भाग्य में पहले से ही निश्चित कर दिया गया है, तो हम छल कपट या पाप आचरण क्यों करें? आप कृपया धर्म पूर्वक चलें। यदि आप धर्म से चलेंगे, तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। थोड़े दिन शायद आपको कष्ट मिल सकता है, पर अंत में आप निहाल हो जाएँगे।
श्री सुदामा जी का एक मित्र भोग विलासिता वाला जीवन जीता था, पर उनका आचरण धर्म पूर्वक नहीं था। वह सुदामा जी से कहते थे आपको “श्री कृष्ण! श्री कृष्ण!” करके क्या मिला है? आप भूखे ही मर रहे हैं। सुदामा जी कई-कई दिनों तक भूखे रहते थे। सुदामा जी ने कहा “श्री कृष्ण के सिवा मैं किसी और के सामने चाटुकारिता नहीं कर सकता। चाहे भूख से प्राण ही क्यों ना त्यागने पड़ें?”। सुदामा जी घर जाते, तुलसी जी अर्पित करके बच्चों को बाँट देते और स्वयं चरणामृत ले लेते। परिणाम में देखिए, द्वारिकापुरी से भी श्रेष्ठ सुदामापुरी की रचना भगवान श्री कृष्ण ने कर दी।
सार बात
धैर्यपूर्वक रहकर और कष्ट सहते हुए यदि हम धर्म का निर्वाह करें, तो निश्चित हमारा मंगल होगा। कोई अधर्मी आपको कुछ दिन के लिए जीवन में ऊपर उठता दिख सकता है, लेकिन जो बल्ब ज़्यादा जलता है, वो फ्यूज़ भी जल्दी होता है।धर्म से चलेंगे, तो भले ही आप टिमटिमाते रहें, पर आपका जीवन बहुत काल तक प्रकाशमय रहेगा। इसलिए धर्म से चलें।
मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज