ब्रह्मचर्य के लिए अति आवश्यक: भोजन और दिनचर्या के नियम

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
ब्रह्मचर्य के लिए आहार और जीवनशैली के सिद्धांत

भोजन के लिए बैठने से पहले हाथ, पैर और मुँह धो कर पवित्र होना चाहिए। कहीं चलते हुए, खड़े होकर या लेट कर भोजन नहीं खाना चाहिए। भोजन मौन रहते हुए, भगवत् चिंतन करते हुए या सत्संग सुनते हुए ही खाना चाहिए। ग़लत, काम युक्त और दूषित चिंतन या क्रिया देखते हुए भोजन नहीं खाना चाहिए। भोजन खाने के स्थान पर भगवत् छवियाँ लगी हों या आसपास संत महात्मा बैठे हों तो वो स्थान पवित्र हो जाता है और मन ग़लत संकल्पों में नहीं अटकता।

भोजन के लिए बैठने से पहले हाथ पैर और चेहरा धो लें

प्रकृति के गुणों के अनुसार भोजन और ब्रह्मचर्य पर उनका प्रभाव

सात्विक आहार

सात्विक आहार

ब्रह्मचर्य के लिए सात्विक आहार बहुत आवश्यक है, इस से शरीर और बुद्धि दोनों स्वस्थ रहते हैं। भोजन में ऋतु की फल और सब्ज़ियों का ही प्रयोग करना चाहिए। अन्य फल और सब्ज़ी जो केमिकल या फ्रोज़न कोल्ड स्टोरेज आदि से उपलब्ध कराये जाते हैं, उन का इस्तेमाल ना करें। ऋतु के ताज़ा फल सब्ज़ी के साथ हल्का भोजन जैसे गेहूं, चावल, जौ की रोटी, मूँग, अरहर, चना, गाय का दूध, घी, सेंधा नमक, चीनी, शकरकंद का प्रयोग कीजिए। ये आहार कभी ब्रह्मचर्य को दूषित नहीं होने देते।

राजसिक आहार

राजसिक आहार

राजसिक आहार खाने से काम स्फुर्णा बहुत जल्दी असर करती है। अत्यंत गरम, कड़वा, तीखा, बहुत मीठा या नमकीन, चटपटा, खट्टा और अधिक तेल युक्त पदार्थ जैसे समोसा, पूड़ी, कचौड़ी, मालपुआ आदि नहीं खाना चाहिए। खाने में प्याज़ लहसुन के अलावा लाल मिर्च, हींग, गाजर, उड़द, अधिक सरसों, मसाले आदि, मांस, मछली, अंडा, शराब, चरस, गाँजा ये सब खाने वाले कभी ब्रह्मचर्य नहीं रह सकते। ये आहार आप के मन को चंचल, कामी, क्रोधी, लालची बनाते हुए पाप की वृत्ति बढ़ाता है और आयु, तेज, सामर्थ्य को नष्ट करता है।

तामसिक आहार

तामसिक आहार

राजसिक आहार को अधिक गर्म या अधिक मात्रा में खाने से वह तामसिक बन जाता है। इस सब के अलावा बासी, रसहीन, दुर्गंध युक्त, जला हुआ, जूठा, एक ही तेल में बार-बार बनाया गया भोजन तमोगुणी हो जाता है। ऐसा भोजन राक्षसी वृत्ति बढ़ाता है जिसे खाने वाला सदा रोगी, दुखी, आलसी, बुद्धिहीन, क्रोधी, लालची, दरिद्र, अधर्मी, पापी और अल्पायु होता है।

भोजन खाते समय चिंतन सँभालना क्यों ज़रूरी है?

भोजन खाते समय, हम जो भी विचार करते हैं, उन से रस बनता है। हमारे भाव उसी रस में लिप्त होकर नस नाड़ियों में जाते हैं और पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं। सात्विक आहार करते हुए भी ये विचार बराबर असर करते हैं, इसलिए भोजन खाते समय विचार दूषित करने वाले दृश्य, पाठ या गंदी वार्ता नहीं करनी चाहिए। अपने चिंतन को भागवतिक बनाने के लिए भोजन के साथ मोबाइल पर सत्संग, नाम कीर्तन, हित चौरासी जी का पाठ, या कोई भगवत् चर्चा आदि देखा या सुना जा सकता है।

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए भोजन के दौरान अपने विचारों को नियंत्रित करें

हमें चाहिए कि हमारा चिंतन भोजन में ना रह कर, भजन में रहे। दिन भर भूखा रहना या एक ही बार में अधिक खा लेना, दोनों ही बातें सही नहीं हैं। हर शरीर की आवश्यकता अलग होती है। आपको स्वयं ये देखना चाहिए कि दिन में कितनी बार और कितना खाया जाए जिससे आपके दिनचर्या और भजन में विक्षेप ना पड़े। हमारा चिंतन श्यामा-श्याम में रहना चाहिए, भोजन में नहीं। इसी कारण व्रत आदि में यदि आपका चिंतन भूख में या भोजन में जा रहा हो तो, इससे अच्छा है कि आप उपयुक्त भोजन ग्रहण कर लें और भगवान का चिंतन करें।

दिनचर्या में भोजन के क्या-क्या नियम हैं?

1. भोजन खाने का समय और मात्रा एक नियम से होना चाहिए और बार-बार बदलनी नहीं चाहिए। दिन में दो बार भोजन खाना साधकों के लिए उचित माना गया है। दिन का भोजन सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच और रात्रि का भोजन 8 बजे से पहले तक हो जाना चाहिए। रात में देर से खाया गया भोजन पचाना कठिन होता है जो कि ब्रह्मचर्य के लिए बहुत घातक है। भोजन में अधिक नमक, मिर्च, मसाला, मिठाई या चंचलता पैदा करने वाले कोई भी पदार्थ नहीं होने चाहिए।

ब्रह्मचर्य पालन के लिए प्रतिदिन भोजन का समय निश्चित होना चाहिए

2. भोजन खाने के बाद कुछ देर टहलना चाहिए, तुरंत ही सोना नहीं चाहिए। शरीर की स्वस्थता और भजन करने के लिए ये अति आवश्यक है। रात्रि में अधिक गर्म भोजन या पेय पदार्थ पी कर तत्काल सोने से निश्चित ही ब्रह्मचर्य की हानि होती है। अगर सोने से पहले दूध भी पियें तो थोड़ा ठंडा कर के ही पीना चाहिए।

3. रात में यदि थकान लग रही हो तो साधक को कोई भोजन या पेय पदार्थ नहीं पाना चाहिए और बिना खाना खाए ही सो जाना चाहिए। सुबह चाहे आप जल्दी भोजन खा लें लेकिन रात में थकान के साथ गर्म भोजन खाकर तत्काल सोने से संयमित रहना कठिन हो जाता है।

4. यदि भोजन करते हुए आपको प्यास लगती है तो ऐसा अभ्यास बनाना चाहिए कि भोजन से एक घंटा पहले या एक घंटा बाद ही पानी पियें। भोजन करते हुए बीच में जल लेने का विधान नहीं है।

ब्रह्मचर्य बनाए रखने के लिए हर दिन कम से कम तीन लीटर पानी पिएं

5. प्रातः काल नींद से उठते ही नाम जप करते हुए बिना कुल्ला किए जल पीने का अभ्यास करना चाहिए। सुबह ख़ाली पेट जितना हो सके जल पीना चाहिए, इस से अंदर की गर्मी निकलती है और साधन में भी सहायता मिलती है। ताँबे के पात्र में रात भर रखा जल पीना आयुर्वेद के अन्तर्गत है और लाभदायक होता है। ताँबे का बासी जल बड़े-बड़े रोग शांत करने में सक्षम है।

6. दोपहर में भोजन करने के बाद कुछ देर टहलना चाहिए और फिर 15-20 मिनट विश्राम के बाद दोबारा भजन या अपने कार्यों में लग जाना चाहिए। रात्रि में सोने से एक घंटा पहले तक भोजन पच जाना चाहिए ताकि भजन करते हुए फिर शयन किया जाये।

ब्रह्मचर्य पुष्टता के लिए अभ्यास और संतों के जीवन से कुछ अनुभव

1. साधक को चाहिए कि स्नान करने के लिए गीज़र के पानी से ना नहाए। रोज़ गीज़र के गर्म पानी से नहाने से त्वचा कमज़ोर हो जाती है और शरीर में सप्तम धातु कठोर नहीं रहती। संत महात्मा गंगा यमुना आदि नदियों की धाराओं में नहाते हैं तो मन को संयमित करने का अभ्यास बढ़ता है। शरीर को सर्दी लगना बहुत आवश्यक है। इस से त्वचा मज़बूत होती है और ब्रह्मचर्य पुष्ट होता है।साधक अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार इसका अभ्यास करें।

ब्रह्मचर्य बनाए रखने के लिए प्रतिदिन गर्म पानी से स्नान करने से बचें

2. दिन भर में साधक को 3 लीटर जल अवश्य पीना चाहिए। शरीर से पसीना, भाप, लघुशंका आदि से पानी निकलता रहता है। इसलिए ऋतु के हिसाब से 3 लीटर या उससे अधिक जल ज़रूर पीना चाहिए, इस से कब्ज़ आदि कई तरह के ब्रह्मचर्य में आने वाले दोष नष्ट होते हैं। जल पीते वक़्त वज्रासन में बैठ कर धीरे-धीरे जल पीना चाहिए। खड़े हो कर या लेटे हुए जल कभी नहीं पीना चाहिए। जो जल का सही मात्रा में सेवन नहीं करते उनमें स्वप्नदोष की शिकायत बनी रहती है।

3. ब्रह्मचर्य पुष्ट करने के लिए भोजन नियमित होना अति आवश्यक है। बिल्कुल भूखे रहना या हर समय भर पेट रहना दोनों ही ब्रह्मचर्य के लिए घातक हैं। इसलिए भोजन में बहुत सावधानी रखनी चाहिए।

नोट: यदि आप स्वप्नदोष या अत्यधिक हस्तमैथुन से जूझ रहे हैं या ब्रह्मचर्य बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, तो ये लेख आपके लिए मददगार होंगे:
1. स्वप्नदोष को कैसे रोकें?
2. हस्तमैथुन के दुष्प्रभाव

मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज ब्रह्मचर्य के नियमों पर मार्गदर्शन करते हुए

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