सबसे पहले हमें अपने कर्तव्य के बारे में सोचना चाहिए। यदि आप दवा बेचने का व्यापार करते हैं तो आपको नकली दवाएँ नहीं बेचनी चाहिए। यदि आप डॉक्टर हैं तो आपको रोगियों को धन के लिये धोखा नहीं देना चाहिए। यदि आप शिक्षक हैं तो छल-कपट से बचते हुए, पूरी लगन से विद्यार्थियों को पढ़ाएँ। यही बात हर व्यवसाय में लागू होती है। बस आप अपने हर कर्तव्य को ईश्वर की सेवा समझें और कर्तव्य निभाते समय ईश्वर का नाम जपें और यह सुनिश्चित करें कि उसमें कोई छल-कपट और अधर्म न हो।
क्या आपको पैसे के लिए दूसरों को धोखा देना चाहिए?
अगर आपको पता है कि दवा नकली है, लेकिन आप सोचते हैं कि इसे बेचकर आप बहुत लाभ कमाएँगे, तो आप गलत कर रहे हैं। आप जानते हैं कि सही दवा से रोगी ठीक हो सकता है लेकिन अगर आप लंबे समय तक बिल बनाना चाहते हैं, तो आप गलत कर रहे हैं। आप जानते हैं कि सरकार आपको छात्रों को अच्छा आचरण सिखाने के लिए भुगतान कर रही है लेकिन आप छात्रों को समय नहीं दे रहे और उस समय को गपशप में बिता रहे हैं, इस तरह आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। किसी भी व्यवस्था में, यदि आप किसी विभाग के अधिकारी हैं या आप राष्ट्र के अधिकारी हैं तो आपको आपके निर्धारित कर्तव्य का पालन करना चाहिए। अपने कर्तव्य का पालन करें, उसे भगवान को समर्पित करें और भगवान का नाम जपें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप साधारण वेश में भी एक महात्मा ही हैं।
अपने कर्तव्य का पालन करना ही धन कमाने का आदर्श मार्ग है। यदि कोई सुनार है और कोई ग्राहक उनसे आभूषण बनवाने के लिए सोना लेकर आया है, तो सुनार को उसी सोने से ईमानदारी और बिना मिलावट के आभूषण बनाने चाहिए। सुनार को असली सोने को नकली आभूषण में नहीं बदलना चाहिए। वो अपने काम के लिए तय किया हुआ शुल्क ले सकता है। आप अपने उत्पाद को महँगा करके बेच सकते हैं, लेकिन छल-कपट या मिलावट करना ग़लत है। यदि आप अपना कर्तव्य सही से निभाएँ, तो यह आपको भगवान तक पहुँचाने वाला मार्ग बन जाएगा। इसी से भगवान आपसे प्रसन्न हो जाएँगे और आपको भगवान की प्राप्ति होगी।
अनैतिकता और धोखे के परिणाम
आजकल बहुत कुछ गलत हो रहा है। कुछ ही लोग अपना व्यवसाय निर्धारित कर्तव्य मानकर कर रहे हैं, अन्यथा हर जगह कुछ न कुछ मिलावट, धोखाधड़ी और झूठ मिलता है। ये लोग मिलावटी चीज़ें अपने परिवार को नहीं देते, बल्कि दूसरों को बेचते हैं। लेकिन इस धोखे से कमाया गया पैसा बहुत खतरनाक होता है और विनाश का कारण बनता है। इसलिए तत्काल लाभ को न देखें, बल्कि अपने और अपने परिवार के भविष्य के लाभ को देखें। यदि आप अधर्म में लिप्त हैं, तो आपको तत्काल लाभ तो दिख सकता है, लेकिन यह आपका और आपके परिवार का भविष्य बर्बाद कर देगा।
धन का दुरुपयोग न करें
नशा न करें, अनुचित आचरण न करें और अनुचित भोजन न करें। हमें धन की बचत करनी चाहिए और उसे अपने परिवार की सेवा में और समाज की सेवा में लगाना चाहिए, तभी हमें परम सुख की प्राप्ति होगी। शराब पीना, मांस खाना, पैसे का दुरुपयोग करके महिलाओं को परेशान करना और जुआ खेलना: यह सब आचरण आपको कभी सुखी नहीं होने देंगे।
शराब पीने से आपका स्वास्थ्य खराब होता है, और समाज और परिवार में आपकी प्रतिष्ठा खराब होती है। अगर आप सोचते हैं कि जुए से आप करोड़पति या अरबपति बन सकते हैं, तो यह जान लीजिए कि कोई भी जुए के पैसे से खुश या शांतिपूर्ण जीवन नहीं जी सका है। धर्मराज महाराज युधिष्ठिर जी ने जब जुआ खेला, तो उन्हें अपनी पत्नी द्रौपदी को राज दरबार में अपमानित होते हुए देखना पड़ा। उन्हें बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ा। हमें मनुष्य जीवन सर्वोत्तम आनंद प्राप्त करने के लिए मिला है। धर्म से धन कमाएँ, ख़ुशी से रहें और सदैव राधा-राधा जपें। राधा-राधा जपने में एक पैसा भी खर्च नहीं होता।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज