गरुड़ पुराण से नर्कों का वर्णन: ये काम करने से मिलता है नर्क

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
गरुड़ पुराण में नरक का वर्णन

नर्क लोक त्रिभुवन का दंड विभाग है। जो रोग हैं, नाना प्रकार के संकट हैं, उसी दंड विभाग से आते हैं। और पूर्ण दंड विभाग यमपुरी है, जहां कर्मों का पूरा हिसाब किया जाता है। यहाँ यमराज अपने दूतों के द्वारा लाए हुए मृत प्राणियों को तत्काल उनके दुष्कर्मों को देखकर उनका परिणाम दे देते हैं।

कुल अट्ठाईस नर्क हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:

तामिस्त्र, अंधतामिस्त्र, रौरव, महारौरव, कुंभीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, शूकरमुख, अंधकूप, कृमिभोजन, संदर्श, तप्तशुर्मि, वज्रकंटकशाल्मली, वैतरणी, पुयोद, प्राणरोध, विशसन, लालभक्ष, सारमेयादन, अवीची, अय:पान, क्षारकर्दम, रक्षोगणभोजन, शूलप्रोत, दंदशुक, अवटनिरोधन, पर्यावर्तन और सुचीमुख।

1. दूसरे का धन, संतान और स्त्रियों का हरण करने वाले की सजा

तामिस्त्र नर्क

जो पुरुष दूसरे का धन हरण करता है, दूसरे की संतान का हरण कर लेता है और दूसरे की स्त्रियों का फुसला कर के हरण कर लेता है, दूषित कर्म करता है, उसे अत्यंत भयानक यमदूत कालपाश में बांधकर बलात् तामिस्त्र नर्क में गिरा देते हैं। इस नर्क का भयानक दंड यह है कि इसमें कहीं प्रकाश नहीं हैं। एकदम अंधकार ही अंधकार। इसमें उसको ना तो किसी तरह का आहार दिया जाता है, ना अन्न, ना जल और निरंतर यमदूत इसे डंडे से पीटते हैं। वहाँ मारना संभव नहीं है, तो जब तक सजा ख़त्म नहीं हो जाती आपको भुगतना पड़ेगा। उसकी केवल पिटाई ही होती रहती है। वो मूर्छित होता है, गिरता है, ना भोजन, ना पानी और घोर अंधकार। ये सजा लंबे समय तक दी जाती है, जैसे सौ वर्ष, पचास हज़ार वर्ष, एक कल्प (करोड़ों वर्ष)। इतने लंबे समय तक पिटाई ही पिटाई होती है।

2. दोस्त की पत्नी के साथ संभोग करने वाले की सजा

अंधतामिस्त्र नर्क

जो मनुष्य किसी दूसरे को विश्वास दिलाता है कि मैं तुम्हारा मित्र हूं और उसकी स्त्री के साथ वो गलत संबंध बनाता है, और उस पुरुष को धोखा देता है, तो यमदूत उसे अंधतामिस्त्र नर्क में ले जाते हैं। वह कटे हुए वृक्ष के समान भयंकर वेदना को प्राप्त होता है, सुध बुध खो बैठता है और उसके अंगों में बहुत तरह की पीड़ा दी जाती है। उसके शरीर को थोड़ा-थोड़ा करके काटा जाता है।

3. अपने बल से दूसरों को कष्ट देने वालों की सजा

रौरव और महारौरव नर्क

जो सोचता है कि मैं बहुत बलवान हूं, मैं बहुत पुष्ट हूं, देखता हूँ कि मुझे कौन परास्त करेगा, जहां आया किसी का भी धन चुरा लिया, जहां मन आया बलात्कार कर लिया, दूसरे धर्मात्माओं का विनाश किया, प्राणियों से द्रोह किया और दूसरों की वस्तुओं को छीन-छीन कर अपना और अपने परिवार का पोषण किया, वो जब अपना शरीर छोड़ते हैं तो रौरव नर्क में जाते हैं। इस लोक में जिन-जिन को जो-जो कष्ट पहुँचाया है, यमराज के दूत, वैसा ही रूप धारण करते हैं, और जीव को भयंकर और चरम सीमा का कष्ट देते हैं। सर्प जैसे क्रूर स्वभाव वाले जीव उसको काटते हैं। रौरव और महारौरव नर्क ऐसे लोगों को प्राप्त होते हैं जो अपने शरीर अभिमान (अहंकार) में आकर दूसरे धर्मात्माओं को, जीवों को, नाना प्रकार के कष्ट देते हैं, उनकी वस्तुएँ छीनते हैं, अपहरण करते हैं और स्वयं का और अपने परिवार के लिए भोग सामग्री एकत्रित करते हैं।

4. मांस खाने वाले की सजा

कुंभीपाक नर्क

जो दूसरे जीवों का मांस और अंडा खाते हैं, तो यमराज के भयंकर दूत, उसी का मांस काट-काट के उसी को खिलाते हैं। यह सजा बहुत लंबे समय तक दी जाती है। लोग कहते हैं हम यह सब नहीं मानते। आप भारतीय विधान को मानें या ना मानें, अगर आप अपराध करेंगे तो सजा तो मिलेगी ही। ऐसे ही आप नर्क को मानें या ना मानें, जब आपको यह सब भोगने को मिलेगा, तब आपको पता चलेगा। जो पशुओं को भूनते हैं, उनके मांस को राँधते हैं, यमदूत उन्हें कुंभीपाक नर्क में लेके जाते हैं। वहाँ ले जाकर उन्हें खौलते हुए तेल की बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में डाल देते हैं।

5. माँ-बाप का अपमान करने वाले की सजा

कालसूत्र नर्क

जो मनुष्य अपनी माता को गालियाँ देता है, अपनी माता को पीटता है, अपने पिता को गालियाँ देता है, पिता को पीटता है, वैष्णव द्रोह करता है, वेदज्ञ जनों का विरोध करता है, शास्त्रों की निंदा करता है, उस पापी को यमदूत कालसूत्र नर्क में ले जाते हैं। वहाँ दस हज़ार योजन का एक घेरा है, वहाँ की भूमि आग से भरी है और ताँबे की तरह लाल है। ऊपर से भयंकर प्रचंड सूर्य का ताप, नीचे से जलती हुई अग्नि और वहाँ उसे छोड़ दिया जाता है, दौड़ो, बस दौड़ते रहो। कितने दिन तक? कल्पों तक (करोड़ों वर्षों तक)। सत्तर वर्ष, अस्सी वर्ष, नब्बे वर्ष, जो चाहो कर लो, लेकिन इसका परिणाम आपको भोगना पड़ेगा। ऐसा ना सोचें कि जो आप कर रहे हैं उसका हिसाब नहीं होगा। अब वो बेचारा इतनी लंबी भूमि में भागता रहता है, जलता रहता है, मरना तो वहाँ है नहीं। बेचैनी बढ़ जाती है, छटपटाता है, खड़ा होता है, दौड़ता है, चीखता है, पुकारता है, लेकिन सुने कौन? कितने दिन तक? जितने उसके शरीर में रोम थे, उतने हज़ार वर्ष तक!

6. धर्म को गाली देने वाले की सजा

असिपत्रवन नर्क

जो पुरुष वैदिक मार्ग का उल्लंघन करके, पाखंड पूर्ण धर्म का आश्रय लेता है, वैदिक मार्ग की अवहेलना करता है, वैदिक सिद्धांतों को गालियाँ देता है, उसे यमदूत कोड़ों से मारते हुए असिपत्रवन नर्क ले जाते हैं। असिपत्रवन नर्क के जो पत्ते हैं, वो तलवार जैसे हैं। जीव को वहाँ पेड़ों के ऊपर फेंक दिया जाता है। टुकड़े टुकड़े हुआ, गिरा, फिर फेंक दिया गया। वो बार-बार मूर्छित होता है, अपने कुकर्मों को याद करके ग्लानि से भर जाता है।

7. अपने पद का दुरुपयोग करने वाले की सजा

शूकरमुख नर्क

जो राज कर्मचारी पद पर है, और धन प्राप्ति के लिये निर्दोषों को दंड देता है, उस महापापी को शूकरमुख नामक नर्क में गिराया जाता है। आपको अधिकार मिला है, भगवान ने आपको जगत की सेवा दी है। यदि आप जानते हैं कि ये बिल्कुल अपराध रहित है और आप किसी के पैसे देने से या किसी के दबाव में आकर, उसे दंड देते हैं, तो आपको नर्क की प्राप्ति होगी। महाबली यमदूत उसके ऊपर कूदते हैं। फिर इसके बाद कोल्हू में डाला जाता है और दंड दिया जाता है।

8. बेज़ुबान जीवों को मारने वाले की सजा

अंधकूप नर्क

जो खटमल, मच्छर, साँप, बिच्छू, छिपकली जैसे जीवों को देखते ही मार देता है, उसे अंधकूप नर्क में गिरा दिया जाता है। भगवान ने इन जीवों के कर्म के अनुसार इनकी रचना की है। रक्त पीना इनका स्वभाव है। ये यह नहीं जानते कि उनके काटने से आपको दुख होगा। रक्त उसका भोजन है, जो भगवान के द्वारा ही निश्चित किया गया है। आप अपना बचाव कीजिए, मच्छर दानी लगा लीजिए, पहले से औषधि आदि का छिड़काव कर लीजिए। लेकिन आप मच्छर, छिपकली, बिच्छू को मारें, ऐसी हमारा शास्त्र आज्ञा नहीं करता।अंधकूप नर्क में सर्प आदि विषैले और भयंकर जीव उस पापी का खून पीते हैं।

9. सिर्फ़ अपने लिए भोजन बनाने वाले की सजा

कृमिभोजन नर्क

जब आप भोजन बनाते हैं तो एक रोटी गाय के लिए निकालिए। कुछ टुकड़े पक्षियों के लिए निकालिए। कोई भूखा या अतिथि आएँ तो उसे भोजन के लिए पूछिए। ठाकुर जी को भोग लगाए बिना भोजन ग्रहण ना करें। जो इन सब को पहले नहीं खिलाते और सिर्फ़ ख़ुद के लिए भोजन बनाते हैं, वह कृमिभोजन नामक निकृष्ट नर्क में गिरते हैं। गीता में भगवान ने कहा है कि जो मुझे बिना अर्पित किए खाता है, वो पाप ही खाता है। कृमिभोजन नर्क में एक लाख योजन का लंबा चौड़ा एक कीड़ों का कुंड है। ऐसे व्यक्ति को उसमें फेंक दिया जाता है।

10. ब्राह्मण होने पर भी ग़लत आचरण करने वाले की सजा

संदर्श नर्क

जो चोरी करता है, जबरदस्ती संपत्ति हड़प लेता है या अपने को ऊंचे कुल में जन्मा हुआ मान कर नीचे कर्म करता है, उसे संदर्श नामक नर्क में ले जाया जाता है और लोहे के गरम-गरम गोलों से दागा जाता है। अगर आप ब्राह्मण होकर शराब पीते हैं तो गरम-गरम लोहा आपके मुँह में डाला जाएगा।

11. व्यभिचार (बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड और लिव इन रिलेशनशिप) करने वाले की सजा

तप्तशुर्मि नर्क

यदि कोई काम से पीड़ित होकर शास्त्र की मर्यादा का त्याग करके काम भाव की पूर्ति करता है तो उसे तप्तशुर्मि नामक नर्क में ले जया जाता है। वहाँ आग में तपाए हुए पुरुष और स्त्रियों जैसे लोहे के शरीर होते हैं, उसको गले लगाने का दंड दिया जाता है। इस सजा का समय भी बहुत लंबा होता है।

12. पशुओं के साथ व्यभिचार करने वाले की सजा

वज्रकंटकशाल्मली नर्क

जो कमासक्त होकर पशुओं के साथ व्यभिचार करता है, मरने के बाद उसे यमदूत वज्रकंटकशाल्मली नर्क में गिराते हैं। इसमें वज्र के समान कठोर कांटो वाला वृक्ष है। उसको ऊपर से उस वृक्ष पर फेंकते हैं, फिर नीचे घसीटते हैं। शरीर फट जाता है, मरना तो है नहीं वहाँ, वो तड़पता रहता है।

13. श्रेष्ठ कुल का अभिमान करके धर्म मर्यादा का त्याग करने वाले की सजा

वैतरणी नर्क

जो राज पुरुषों के घर में जन्म लेकर या श्रेष्ठ कुलों में जन्म लेकर, अभिमान से युक्त हो जाते हैं और अपनी धर्म मर्यादा को खो देते हैं, उन्हें वैतरणी नदी में फेंक दिया जाता है। उसमें मल, मूत्र, पीव, रक्त, केश, नख, हड्डी, चर्बी और पिंसा हुआ मांस बहता है। उस नदी में बड़े-बड़े जहरीले जीव हैं जो बार-बार उसको काटते हैं।

14. पवित्रता और नियमों का त्याग करने वाले की सजा

पुयोध नर्क

जो लोग पवित्रता का त्याग करते हैं, शास्त्र के द्वारा निर्धारित आचरणों का त्याग करते हैं, नियमों का त्याग करते हैं, लज्जा को त्याग करके गंदे आचरण करते हैं, पशुओं के साथ गंदे आचरण करते हैं, उनको पुयोध नामक नर्क में भेजा जाता है, जहाँ उन्हें मल, मूत्र और कफ से भरे हुए कुंडों में फेंका जाता है। वो इन घृणित वस्तुओं के बीच बहुत काल तक सड़ते रहते हैं।

15. पशुओं का वध करने वाले की सजा

प्राणरोध नर्क

जो पशुओं का वध करते हैं, उन्हें प्राणरोध नामक नर्क में डाल दिया जाता है, जहाँ यमदूत उन्हें बार-बार बाणों से बेधते रहते हैं।

16. पाखंडी लोगों की सजा

जो लोग पाखंड फैलाते हैं, और यज्ञ में जानवरों की बलि देते हैं, उनको विशसन नामक नर्क में डाला जाता है और वैसे ही बार-बार उनकी गर्दन काटी जाती है। किसी भी जीव की हिंसा करने से कोई देवी देवता प्रसन्न नहीं होते।

17. दूसरों का धन लूटने और संपत्ति नष्ट करने वाले की सजा

सारमेयादन नर्क

जो राजा या राज पुरुष (सरकारी ऑफिसर), दूसरों का धन लूटते हैं या किसी की संपत्ति को नष्ट करते हैं, उन्हें सारमेयादन नर्क भेजा जाता है। पूरे नगर में आग लगवा देना, बिना अपराध के सजा दिलवाना, पूरा गांव लूट लेना, व्यापारियों के दलों को लूट लेना, इसके कुछ उदाहरण हैं। सारमेयादन नर्क में ऐसे यमदूत हैं जिनकी दाढें वज्र से समान हैं, ऐसे बीस यमदूत भयंकर कुत्तों का रूप धारण करके उसके ऊपर टूटते हैं।

18. झूठ बोलकर व्यापार करने वाले की सजा

अवीची नर्क

जो दूसरे से पैसा लेकर झूठी गवाही देते हैं, झूठ बोलकर व्यापार करते हैं, जो अपना काम बनाने के लिए झूठा प्रलोभन दे देते हैं, उन्हें अवीची नामक नर्क में गिराया जाता है। उसे सौ योजन ऊपर से फेंका जाता है, फिर ऊपर ले जाकर फिर फेंका जाता है, यही चलता रहता है। गिराए जाने पर उसके शरीर की नस-नस टूट जाती है, प्राण तो निकलते नहीं, केवल यातना।

19. अपना संकल्प तोड़ने वाले की सजा

जो कोई संकल्प लेता है, आज से ये नहीं करूंगा, या आज से मैं ऐसा करूंगा, कोई व्रत या नियम लेता है, और अपने नियम या संकल्प को तोड़ता है, प्रमाद करता है, उसे अय:पान नामक नर्क में गिराया जाता है। उसकी छाती पर चढ़कर यमदूत उसे गला हुआ लोहा पिलाते हैं।

20. बड़ों का अपमान करने वाले की सजा

जो जन्म तपस्या, विद्या, जन्म, वर्ण या आश्रम के अभिमान में आकर, बड़ों का सत्कार करना छोड़ देता है, वह जीता हुआ मुर्दे के समान है।अपने बड़ों का सत्कार करें, महापुरुषों का सत्कार करें। माता, पिता, बुजुर्गों और गुरुजनों का सत्कार करें। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो है तो आपको क्षारकर्दम नामक नर्क में गिराया जाएगा।

नर्कों का विवरण

21. जानवरों की बलि देने वाले की सजा

जो लोग भैरव, यक्ष, राक्षस आदि के पूजन में जानवरों की बलि देते हैं, उन्हें खाते हैं, उल्लास मानते हैं, उन्हें रक्षोगणभोजन नामक नर्क में ले जाया जाता है। वहाँ कुल्हाड़ियों से काट-काट कर, उनका मांस यमदूत खाते हैं और खूब उत्सव मनाते हैं।

22. कुत्ते बंदर आदि जानवरों के साथ खिलवाड़ करने वाले की सजा

जो लोग निरपराध जीवों को पहले फुसला कर बुलाते हैं और फिर उन्हें फँसा लेते हैं और फिर उन्हें छेड़ते हैं, कांटे से वेदना देते हैं, रस्सी से बांधते हैं, खिलवाड़ करते हैं, उन्हें शूलप्रोत नामक नर्क में शूलों से बेधा जाता है।

23. दूसरों से ईर्ष्या और ग़ुस्सा करने वाले की सजा

दंदशुक नर्क

जो सर्पों के समान उग्र स्वभाव वाले पुरुष, दूसरों को ईर्ष्या और रोष के कारण पीड़ा पहुंचाते हैं, उन्हें मरने पर दंदशुक नामक नर्क में गिराया जाता है। वहां पाँच-सात मुख वाले भयंकर सर्प उनपर छोड़े जाते हैं।

24. दूसरों का अपहरण करके उन्हें अंधकार भरी जगहों पर रखने वाले की सजा

जो लोग किसी का अपहरण करके, उनको अंधकार वाली जगहों पर रखते हैं जैसे कि, कुएँ में, नहरों में या पहाड़ की गुफाओं में, तो यमदूत ऐसे लोगों को अवटनिरोधन नामक नर्क में रखते हैं। वहाँ एक कुएँ में विषैली गैस होती है, उसमें जीव को डाल दिया जाता है और उसका दम घुटता है।

25. अतिथियों को कुटिल दृष्टि से देखने वाले की सजा

पर्यावर्तन नर्क

जो गृहस्थ अपने घर में आए हुए अतिथि, साधु और वैष्णव जनों की तरफ कुटिल दृष्टि से देखता है, मानो भस्म कर देगा, उसे पर्यावर्तन नर्क में भेजा जाता है। वहाँ कठोर चोंच वाले गिद्ध और पक्षी उसके ऊपर छोड़े जाते हैं, जो उसकी आँखों को नोचते हैं।

26. धन के लालची लोगों की सजा

जो व्यक्ति अपने को बड़ा धनवान समझता है, दूसरे को नीचा समझकर उसका अपमान करता रहता है और धन के संग्रह और सुरक्षा की चिंता में ही रहता है, वो मरने पर सुचीमुख नर्क में गिरता है। उस पापात्मा के सारे अंगों को यमदूत बड़ी-बड़ी सुइयों से सीते हैं।

निष्कर्ष

कोई यह संशय ना करे कि यह सब लिखी-पढ़ी बातें हैं, अधर्म पारायण जीव को निश्चित भोगना पड़ता है। बारी-बारी से वो नर्को में जाता है और भयंकर कष्ट भोगता है। इसी प्रकार जो धर्मात्मा होता है, पुण्य करता है, वह स्वर्गों में जाता है और विविध प्रकार के स्वर्ग सुख भोगता है। नर्क और स्वर्ग के जब भोग भोगे, पाप और पुण्य ख़त्म हुआ तो कुछ पाप और कुछ पुण्य लेकर मृत्यु लोक (पृथ्वी) पर जन्म लेता है। जीव की कई उत्तम या ख़राब गतियाँ यहां दिखाई देती हैं। कोई धनी है, कोई निर्धन है, कोई स्वस्थ है, कोई रोगी है, यह सब पाप और पुण्य के हिसाब से है। आप सोचते हैं कि हमें भजन करने की क्या जरूरत है? सत्संग सुनने की क्या जरूरत है? नियम संयम धारण करने की क्या जरूरत है? इसलिए जरूरत है कि आपकी ऐसी दुर्गति ना हो। आप सोचते हैं, केवल पशुओं की तरह कमा लो, खा लो, मनमानी आचरण करो, कोई देखता तो है नहीं। भूल ना करिए। डरते रहिए कि किसी के भी प्रति कोई अपराध न बने और निरंतर राधा-राधा जपते रहिए!

मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज नर्कों का वर्णन करते हुए

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