अगर आपको आध्यात्म का ज्ञान नहीं हैं और अगर आप मन को जीतना नहीं सीखे हैं, तो चाहे कितना भी धन कमा लें, कोई भी पद प्राप्त कर लें लेकिन चिंता, भय, शोक, और दुख से आप नहीं बच सकते। कुछ लोग सोचते हैं कि भगवान कि दया से परिवार, धन, संपत्ति सब कुछ है, जीवन सुखमय है, लेकिन फिर भी उन्हें एक भय सताता रहता है कि एक दिन मरना पड़ेगा और उनका ये सब यहीं छूट जाएगा। इसी भय को मिटाने के लिए ही तो हमें यह मनुष्य जीवन मिला है। ना परिवार आपके साथ जाएगा ना ही पैसा! और जाना कहाँ है मरने के बाद, इस बात का भी अभी हमें पता नहीं। जो धन यहाँ इकट्ठा किया है, वो जहाँ आप जाएँगे, वहाँ किसी काम नहीं आएगा। जो धन वहाँ चलता हैं, “राधा-राधा”, वो तो आपने कमाया ही नहीं। यही कारण है भय का और घबराहट (एंग्जायटी) का।
कल्पनात्मक भय का कारण!
अगर आप पाप करेंगे तो घबराहट होगी ही। अगर आप धर्म-विरुद्ध आचरण करेंगे, तो वो कर्म भूत की तरह आपके पीछे पड़कर आपको जलाते रहेंगे। आप ज़्यादा सोचते रहेंगे और हमेशा भय बना रहेगा। दूषित और पाप करने वाले मन का यही परिणाम है। हम सभी से गलतियाँ होती हैं। जब गलती हो जाती है, तो वो हमको डराती है। एक गलती को छुपाने के लिए हम फिर कई गलतियाँ करना शुरू करते हैं। हम झूठ बोलते हैं, कपट करते हैं और ये ग़लतियाँ क्रमशः हमारे मन को मलिन करती चली जाती हैं। अगर आपका मन डिप्रेशन मे जा रहा है, तो ये पाप का लक्षण है। आपसे कोई ना कोई अपराध बना है जो आपसे ऐसा चिंतन करवा रहा है। अब उससे आपके जीवन में कल्पनात्मक भय उत्पन्न हो रहा है। इसी भय से बचने का उपाय अध्यात्म है।
भागवतिक चिंतन से मिलेगा मन को विश्राम
जब तक भागवतिक चिंतन नहीं होगा, विश्राम नहीं मिलेगा। नींद के बाद हम फ्रेश महसूस करते हैं। ऐसी क्या खास बात है नींद में? नींद से केवल कुछ घंटों के लिए हमारा संसार का चिंतन छूटता है। अगर आप जाग्रत अवस्था में संसार का चिंतन छोड़ दें, तो कितने आनंद में रहेंगे? यही अध्यात्म है। संसार का चिंतन छूटा, और हम भगवान के चिंतन मे मगन होकर सब काम कर रहे हैं। राधा-राधा जपते-जपते झाड़ू लगा रहे हैं, ऑफिस का काम कर रहे हैं, रसोई बना रहे हैं और बाक़ी सब कार्य भी कर रहे हैं। यह नाम जप आपको पाप कर्मों से बचाता है। इसके बाद आपके मन में अच्छे-अच्छे भाव आने लगेंगे। और जीवन में एक आनंद आने लगेगा। और कहीं कोई पाप ना हो जाए, ऐसा भय लगने लगेगा। राधा नाम ही परम औषधि है।
पाप करने से बचें
भूल कर भी कोई पाप न करें! कुछ पाप हमसे हो जातें हैं जिनको आप समझकर भी नहीं समझते। जैसे कि गर्भ-हत्या (भ्रूण-पात)। यह एक बहुत बड़ा पाप है। लेकिन जानते हुए भी प्रायः लोग यह गलती कर देते हैं। फिर कैसे आपका मन प्रसन्न रहेगा? कई बच्चे (15 से 20 वर्ष की आयु में) दोस्त बनाते हैं (गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड) और शास्त्र ज्ञान एवं इंद्रिय संयम के अभाव में, गंदी क्रियाएँ करते हैं, और उससे उनका मन अपवित्र हो जाता है। ये अपवित्रता व्यभिचार की प्रवृत्ति लाकर आपके मन को असंयमित कर देगी। और आगे आप गृहस्थ जीवन के लायक़ नहीं रहेंगे। ऐसी कुछ ग़लतियों का फिर उस मनुष्य को पूरा जीवन दंड भोगना पड़ता है।
गलतियाँ होना स्वाभाविक है, सुधार करें!
हम अपने शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करें। अपने धर्म को समझें और अपनी मर्यादा से चलें। इससे मन की घबराहट और भय की शिकायत दूर होगी। डिप्रेशन की प्रथम स्थिति यही है। बहुत ज़्यादा सोचना। और अगर यह बढ़ जाएगा तो आपको दवाई लेनी पड़ेगी। ये दवाओं से ठीक होने वाली बातें नहीं हैं। यहाँ विचार को पवित्र और शुद्ध करना आवश्यक है। आप नाम जप कीजिए, अच्छे आचरण कीजिए और भगवान का भरोसा रखिए। हर कर्म का फल अवश्य मिलता है। जिस प्रकार बुरे कर्मों का परिणाम मिलता है, उसी प्रकार अच्छे कर्मों का शुभ फल भी प्राप्त होता है। लेकिन चरित्रहीनता और पाप कर्म हमें भगवान के चिंतन में नहीं लगने देते। अपनी गलतियों का प्रायश्चित करें, नाम जप करें और हमसे कोई गलती न हो जाए, इस बात का ध्यान रखें।
केवल भगवान का नाम ही आपको बचा सकता है!
हमसे पाप तभी होते हैं, जब हमें लगता है कि हमें कोई देख नहीं रहा। लेकिन उसी समय सोचो कि आपको कोई देख रहा है। जो सबको देखता है वो आपको भी देख रहा है। जो सब जगह है वो आपके पास भी है। जो सबमें है, वो आप में भी है। इसलिए गलत कार्य ना करें। बचने का उपाय है कि नाम जप करें और भगवद् लीला का गायन करें। आप हर दिन श्रीमद् भागवत का एक अध्याय पढ़ें। और फिर उसका प्रभाव देखें! जो खाएँ, पहले उसे भगवान को अर्पित करें। आपकी बुद्धि शुद्ध होने लगेगी। जैसे-जैसे आप राधा-राधा जपेंगे, वैसे-वैसे आपका हृदय पवित्र होने लगेगा। या आपको भगवान का जो भी नाम प्रिय हो, उस नाम का जप करें।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज