आज भ्रष्टाचार बहुत फैला हुआ है। जब तक किसी का जीवन आध्यात्मिक नहीं है, वह एक पशु ही है, मानव रूप में एक राक्षस है। वह नहीं जानता कि उसका कर्तव्य क्या है। सुखी जीवन के लिए एक शासन की आवश्यकता होती है। यह शासन किसी धर्मग्रंथ, ईश्वर या भगवत् प्राप्त महापुरुष का हो सकता है। समाज आज अपने चरित्र और कर्तव्य की कीमत पर भी पैसा कमाने में व्यस्त है।
अध्यात्म के बिना बुद्धि को शुद्ध करना संभव नहीं है। साथ ही, आज, यह समझना कठिन है कि सच्ची आध्यात्मिकता का अर्थ क्या है। आपको स्वयं आध्यात्मिकता में स्थित होने और लालच से मुक्त होने की आवश्यकता है। तभी समाज को अध्यात्म का दर्पण दिखाया जा सकता है। लेकिन यदि धर्म और अध्यात्म पैसों के दुम पे बेचा जाएगा तो यह अपना केवल पाखंड का ही रूप लेगा।
आज पाखंडी और ढोंगी लोग अध्यात्म के नाम पर झूठ बेच रहे हैं। समाज की वर्तमान स्थिति का यही कारण है। बदलाव की जरूरत है और यह तभी होगा जब हम सच्चाई की राह पर चलेंगे। यह तभी हो सकता है जब हम उन लोगों का अनुसरण करें जो पहले से ही सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं। ऐसे संतों को ढूंढना कठिन है। लेकिन भगवान की कृपा से, कुछ संत अभी भी मौजूद हैं, जो हमें हमारे कर्तव्य और अधर्म के बीच अंतर अपनी वाणी के द्वारा समझाते हैं। हमारी नई पीढ़ी अपने सच्चे कर्तव्य और धर्म से अनजान है और केवल अपनी इंद्रिय इच्छाओं की पूर्ति में लगी हुई है।
लोग सोचते हैं कि केवल पैसे से ही खुशियाँ खरीदी जा सकती हैं और वे पैसे के लिए अपने धर्म का त्याग कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, जो वकील किसी निर्दोष को बचा सकता है वह पैसे के लालच में अंधा होकर दोषियों को बचा रहा है। जब यह अधर्म से प्राप्त धन आपके घर में प्रवेश करता है तो अशांति और कलह का कारण बनता है। धर्म का पालन करके ही मनुष्य सुखी रह सकता है।
मैं ईमानदार हूं, लेकिन मेरे आसपास के लोग मुझे बेईमानी करने को मजबूर करते हैं!
हमारे पास कई अधिकारी आए हैं जिन्होंने कहा है कि जब वे धर्म का पालन करने की कोशिश करते हैं, तो उनके वरिष्ठ उन्हें धमकी देते हैं, और वे अपनी नौकरी भी खो सकते हैं। यदि वे धर्म का पालन करते हैं तो वे अपनी नौकरी खोने का जोखिम उठाते हैं, और जब वे रिश्वत स्वीकार करते हैं, तो वे अपने कर्तव्य और धर्म का त्याग करते हैं, ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए? इसका एक ही उत्तर है कि यदि आप अपने कर्तव्य का पालन करेंगे और सदाचारी रहेंगे तो आप अंत में विजयी होंगे। आपको इस नौकरी से एक बार निकाल दिया जा सकता है, लेकिन जब आप भगवान के संरक्षण में हैं, तो आपको किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। निडर हो जाइए। आपकी रक्षा भगवान स्वयं करेंगे। हो सकता है कि आपको अपने आस-पास की दुनिया में समर्थन न मिले, लेकिन भगवान आपके साथ रहेंगे और आप जीतेंगे।
गलत तरीके से कमाए गए धन का प्रभाव
अधर्म से इकट्ठा किया गया धन आपके पूरे परिवार की बुद्धि को भ्रष्ट कर देगा। इससे आपके परिवार में झगड़े होने लगेंगे और जीवन में अशांति रहेगी। भयानक बीमारियाँ आएंगी या ऐसे बच्चे पैदा होंगे जो जीवन भर आपके लिए दुख का कारण बनेंगे। कर्म आपको रुलाएगा; आपको अपने ग़लत कार्यों का हिसाब देना पड़ेगा। यदि आपने किसी निर्दोष व्यक्ति पर अत्याचार किया हो या आपने गलत तरीके से धन लिया हो तो यह आपको नष्ट कर देगा।
हम ऐसी कई घटनाओं के बारे में सुनते हैं। जब पूरा परिवार यात्रा कर रहा था, तो एक दुर्घटना होती है। सब लोग कुचले जाते हैं, या कार के अंदर ही आग लग जाती है। यह सब कर्म है। अधर्म से बचें। आप सदा जीवन जियेंगे, लेकिन सुरक्षित रहेंगे। यदि नहीं, तो समय और कर्म आपसे हिसाब करेंगे और आपको कष्ट सहना पड़ेगा। जिस परिवार के लिए आपने पैसा कमाया वही परिवार आपको जीवन भर कष्ट देगा। जिन लोगों के साथ आप अन्याय करते हैं उनकी बद्दुआएं आपको शांति से नहीं रहने देंगी।
अधर्मियों के हश्र पर महाभारत का एक उदाहरण
एक समय था जब दुर्योधन और कौरव बहुत प्रसन्न रहते थे और पांडव वनवास भोग रहे थे और कठिन जीवन जी रहे थे। समय आने पर सभी अधर्मी मारे गये और युधिष्ठिर जी राजगद्दी पर बैठे। अपने कर्तव्य का पालन करने वाले को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, और अधर्मी सुखी लग सकते हैं। लेकिन अंत में अधर्मी का नाश होता है और धर्म का पालन करने वाले को परम पद प्राप्त होता है।
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं; यदि मैं किसी प्रोजेक्ट के पैसे का उपयोग किसी और चीज़ के लिए करूँ तो क्या यह ग़लत है?
अगर आपको किसी प्रोजेक्ट के लिए पैसा मिलता है तो उसका इस्तेमाल उसी काम में करना चाहिए जिसके लिए वह दिया गया है। यदि आप इसका प्रयोग किसी अन्य कार्य में करते हैं तो यह आपकी ओर से अधर्म है। यह आपको नष्ट कर देगा और आपको नीचे गिरा देगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे कहां से लेते हैं या कितना लेते हैं, यह सब गलत है। यह इस देश के कानून में एक अपराध है और भगवान के दरबार में भी एक अपराध है। अध्यात्म के बिना इन सब विषयों का ज्ञान नहीं हो सकता। यदि आप धर्मपूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो आपकी शिक्षा सार्थक होगी, आपकी उन्नति होगी और जीवन सार्थक होगा।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी