धर्म विरुद्ध भोगों का त्याग करें। ये विष के समान हैं; जब यह चढ़ते हैं तो इंसान को पागल बना देते हैं। ये जन्मों-जन्मों के लिए आपके चित्त में ग़लत संस्कार पुष्ट करते हैं। हम सोचते हैं कि हम पाँच मिनट के लिए ही तो ग़लत काम कर रहे हैं, लेकिन उसके संस्कार आपको पाँच लाख जन्मों तक नहीं छोड़ेंगे। आपका मन आपको बार-बार उस भोग को भोगने के लिए कहेगा, आप अंदर ही अंदर जलते रहेंगे। विष पीने से आपका एक जन्म नष्ट होता है, विषय आपको लाखों जन्मों तक नष्ट करते रहते हैं।
जब आप नाम जप करना शुरू करेंगे तो आप ख़ुद यह अनुभव करेंगे कि आपका मन बार-बार विषय और भोगों के पूर्व संस्कार आपके सामने प्रस्तुत करेगा। कमजोर उपासक उन विषयों को भोगना शुरू कर देता है और हार जाता है। उसका अध्यात्म मार्ग फिर एक बार रुक जाता है। फिर वह पुल टूट जाता है जिससे वह भवसागर से बाहर जा सकता था।
ना अपने शरीर से ममता रखें, ना शरीर संबंधियों से । अगर आप किसी से राग रखेंगे, तो फिर द्वेष भी होगा। किसी भी चीज़ का अहंकार ना करें। काल प्रति पल हमें चबा रहा है, हम बस देख नहीं पा रहे। जीवन के सभी दुखों की निवृत्ति एकमात्र नाम जप से होती है। अगर आपको नाम जप में रुचि नहीं है तब भी नाम जप करिए। जैसे अगर हमें औषधि में रुचि ना हो, और फिर भी हम उसका सेवन करें, तो वह रोग को ठीक करेगी ही। इसी तरह भव रोग की अचूक औषधि है नाम जप।
चेतोदर्पणमार्जनं: चित्त की सफाई
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श्री चैतन्य महाप्रभु ने शिक्षाष्टक में लिखा है:
चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नि-निर्वापणं
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
हमारा चित्त विषय चिंतन करने से गंदा (विकार युक्त) हो गया है। जब हम नाम जप करते हैं, तो हमारे चित्त रूपी दर्पण की सफाई होती है। हमारे मन में बहुत गंदगी है और जब हम नाम जप करते हैं तो विकार रूपी धूल बाहर निकलती है। आपको काम, क्रोध आदि के विकार बढ़ते हुए दिख सकते हैं। आपको डरना नहीं है। इसका मतलब है कि आपके हृदय की सफ़ाई हो रही है। जैसे ही आपका चित्त रूपी दर्पण साफ़ हो जाएगा, तो आपको ख़ुद का दर्शन (आत्मबोध या भगवद् साक्षात्कार) हो जाएगा। विषयों का चिंतन करने से हमारे चित्त रूपी दर्पण पर कालिमा जमा हो गई है। इलसिये हम स्वयं को ना जानकर, अपने आपको यह शरीर मान बैठे हैं।
जैसे अगर किसी जंगल में आग लगी हुई हो और वर्षा हो जाए तो वह आग शांत हो जाएगी। वैसे ही इस संसार में काम अग्नि, क्रोध अग्नि आदि से लगी आग को नाम जप रूपी वर्षा शांत कर देती है। राधा-राधा जपें, आपके सारे विकार शांत हो जाएँगे। अपने या किसी और के मन को प्रसन्न करने के लिए कोई धर्म विरुद्ध आचरण ना करें, अन्यथा आपको जीवन भर अंदर ही अंदर जलना पड़ेगा। आपका मन जब ग़लत मार्ग पर चलकर सुखी होने की बात करे और आपको लगे कि ग़लत कार्य कर लेते हैं, मन शांत हो जाएगा, तो यह एक धोखा है। फँसना मत, यह दुष्ट मन तुम्हारे ऊपर चढ़ बैठेगा और तुम्हारा नाश कर देगा। मन को खुश करने के लिए कुछ मत करना, नहीं तो परमार्थ से भ्रष्ट हो जाओगे। भय और वासना आपको अपना ग़ुलाम बना लेंगे।
नाम जप: आध्यात्मिक उन्नति की कुंजी
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श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्।
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
जैसे चंद्रमा को देखकर कुमुद (लिली) का फूल खिल जाता है, वैसे ही आपके कल्याण (आध्यात्मिक उन्नति) के कुमुद रूपी फूल को खिलाने के लिए नाम रूप एक चाँदनी है। वह विद्या जो अविद्या को नष्ट कर दे, उसका जीवन है नाम जप। जितना नाम जप करोगे, उतना शुद्ध ज्ञान आपको प्राप्त होगा।
आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं
सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम् ॥1॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
जैसे-जैसे आप नाम जप करेंगे, आपका आनंद बढ़ेगा। शुरुआत में आपको अंदर जलन हो सकती है। आपकी पूर्व की ग़लतियाँ मिटेंगी। फिर आप काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों से ऊपर उठेंगे और एक-एक क्षण में आपको आनंद का अनुभव होगा। अभी आपकी जिह्वा अविद्या से बीमार है, तो शुरुआत में आपको नाम का स्वाद नहीं आएगा। जब आप नियम से नाम जप करेंगे, तो यह अविद्या का नाश करके ज्ञान प्रकाशित करेगा और फिर आपके जीवन में आनंद की बाढ़ आने लगेगी। आपको एक-एक नाम में स्वाद आने लगेगा। लेकिन यदि आप कुसंग करेंगे या पाप करना बंद नहीं करेंगे तो आपको इस रस का स्वाद नहीं आएगा। नाम जप संपूर्ण आत्मा को आनंद से सराबोर कर देता है।
नाम में अपार सामर्थ्य: नाम में है प्रभु की शक्ति
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नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति-
स्तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः।
एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि
दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नाऽनुरागः ॥2॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
प्रभु के नाम में अपार सामर्थ्य है। भगवान ने अपनी संपूर्ण शक्ति नाम में विराजमान कर दी है। जो नियम पूर्वक नाम जप करता है, प्रभु का स्मरण करता है, उसको यह अनुभव हो जाएगा कि भगवान ने अपनी सारी शक्ति नाम में रख दी है। आप हर समय नाम जप कर सकते हैं, चाहे आप पवित्र हों या अपवित्र। चैतन्य महाप्रभु यहाँ लिख रहे हैं कि प्रभु आपने इतनी कृपा तो कर दी कि आपने अपनी शक्ति नाम में विराजमान कर दी और पूरी छूट दे दी कि अपवित्र और पवित्र अवस्था में नाम जप किया जा सकता है, लेकिन मेरा दुर्भाग्य तो देखो कि मैं आपकी कृपा की अवहेलना कर रहा हूँ और नाम जप नहीं कर रहा हूँ। मेरा दुर्भाग्य देखो कि मुझे नाम में प्रीति नहीं हो रही।
नाम जप में स्थिरता कैसे लाएँ: सहनशीलता का महत्व
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तृणादपि सुनीचेन, तरोरपि सहिष्णुना।
अमानिना मानदेन , कीर्तनीयः सदा हरिः ॥3॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
यहाँ महाप्रभु चैतन्य देव नाम जप को संचय करने का उपाय बता रहे हैं। आप स्वयं को एक तृण (तिनका) से भी तुच्छ समझें। कोई आपका कितना भी उपहास करे, अपमान करे, या आपको क्लेश दे, आप उसे सहन करें। अपने को सबसे छोटा समझें। एक भक्त सारे विश्व में अपने प्रभु को देखकर सबका सेवक बन जाता है और सबका सेवा भाव से आदर करता है। जैसे एक वृक्ष गर्मी-सर्दी सब सहता है, कोई फल के लिए डंडा मारता है तो उसे फल दे देता है, कोई कुल्हाड़ी से डाल काट लेता है, कोई समीप चला जाए तो उसे छाया दे देता है: वो दूसरों को सुख देता ही है। ऐसे ही हम नाम जापकों को अगर कोई कष्ट दे, पीड़ा दे, गाली दे तो हमें उसका मंगल ही मनाना है।
जब कोई हमारा सम्मान करे, तो हमें लज्जा आनी चाहिए कि हम इस योग्य नहीं हैं, यह हमारा सम्मान नहीं, हमारे गुरुदेव और इष्ट देव का सम्मान है। सम्मान स्वीकृत नहीं होना चाहिए। लाखों लोग आपको प्रणाम करें लेकिन अंदर से आपकी स्वीकृति ना हो तो आपके भजन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर कोई आपको प्रणाम करे और आपकी स्वीकृति हो गई तो भजन में बाधा पहुँच जाएगी। दूसरों को सम्मान दें, स्वयं सम्मान रहित रहें। निरंतर भगवद् स्मरण करें और अपने कर्तव्य का पालन करते रहें।
इच्छाएँ नहीं: बस प्रभु की भक्ति
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न धनं न जनं न सुन्दरीं , कवितां वा जगदीश कामये।
मम जन्मनि जन्मनीश्वरे , भवताद्भक्तिरहैतुकी त्वयि ॥4॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
हे प्रभु, मैं धन, परिवार, स्त्री आदि की इच्छा नहीं करता। बस प्रभु, यदि मेरे कर्मों के अनुसार मुझे फिर जन्म मिले, तो मैं आपकी ही भक्ति करूँ। चाहे मुझे बार-बार जन्म मिले, लेकिन मैं आपकी ही अनुराग भक्ति में मग्न रहूँ।
अयि नन्दतनुज किङ्करं , पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ।
कृपया तव पादपंकज- स्थितधूलीसदृशं विचिन्तय ॥5॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
हे नंदनंदन, मैं तुम्हारा दास हूँ। मैं इस घोर दुष्पार संसार सागर में पड़ा हुआ हूँ। मुझे कृपा करके आप अपने चरणों की धूल बना लीजिए ताकि मैं हर समय आपके चरणों से लगा रहूँ।
नयनं गलदश्रुधारया वदनं गद्गद्-रुद्धया गिरा।
पुलकैर्निचितं वपुः कदा तव नाम-ग्रहणे भविष्यति ॥6॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
प्रभु, मेरी ऐसी स्थिति कब होगी कि मेरी आँखों से अश्रु धारा बह रही हो, मेरा कंठ अवरुद्ध हो गया हो, शरीर में रोमांच हो और मैं पुकार रहा हूँ, कृष्ण-कृष्ण!
प्रभु के बिना संसार शून्य
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युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम्।
शून्यायितं जगत् सर्व गोविन्द-विरहेण मे ॥7॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
मेरा एक-एक निमेष (पलक झपकने का समय) युग-युग के समान व्यतीत हो रहा है। मेरे नेत्रों से अश्रु वर्षा हो रही है और प्रभु! आपके बिना यह संपूर्ण संसार मुझे शून्य नजर आ रहा है।
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मा-
मदर्शनार्न्महतां करोतु वा।
यथा तथा वा विदधातु लम्पटो
मत्प्राणनाथस्तु स एव नापरः ॥8॥
श्री चैतन्य शिक्षाष्टक
हे प्रभु, मैं आपका हूँ। आपकी चरण सेवा के सिवा मेरे जीवन का कोई और उद्देश्य नहीं। अब आप चाहे मुझे गले से लगा लो या लात मार के, पैरों से रौंद कर निकल जाओ, आप स्वतंत्र हो, जैसा चाहो वैसा करो।
निष्कर्ष
ऐसा अभ्यास करें कि नाम जप किसी भी परिस्थिति में ना छूटे। अगर निरंतर नाम जप चलता रहे तो बात बन जाएगी। लेकिन अधिकतर लोगों को नाम जप में प्रीति ही नहीं है। एक मिनट भी नाम छूटने से हमें पीड़ा होनी चाहिए। नाम जप सब शास्त्रों का सार है, नाम जप में अपार सामर्थ्य है। इससे असंभव भी संभव हो जाता है।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज