हम ऑफिस में निरंतर आठ-दस घंटे कार्य करते हैं, तो उस दौरान भगवान का स्मरण …
अध्यात्म
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जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि।दयित दृश्यतां दिक्षु तावकास्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥ व्याख्या …
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मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणिप्रसन्न वक्त्र पङ्कजे निकुञ्ज भूविलासिनिव्रजेन्द्र भानु नन्दिनि व्रजेन्द्र सूनु संगतेकदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥1॥ …
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आश्रय एक बहुत बड़ा बल है। यदि हम प्रभु के आश्रित हो जाएँ या धाम …
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हमारी जन्मों की प्यास ओस चाटने से नहीं बुझेगी। हमें छककर पानी पीना पड़ेगा। इसलिए …
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संयमी साधक वह होता है जो आगे बताई गई बातों को अपने जीवन में उतारे। …
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नाम जप में निरंतरता बनाए रखने में हमारे चित्त को सबसे अधिक बाधा पहुँचा सकता …
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निरंतर साधना अत्यंत आवश्यक है, चाहे वह नाम जप हो, चाहे आंतरिक रूप से श्री …
- अध्यात्मभक्त चरित्र
कितना भी दान-पुण्य कर लो, लेकिन नाम जप के बिना सब व्यर्थ है: क्यों महादानी राजा नृग को गिरगिट बनना पड़ा? (ऑडियो सहित)
द्वारिका में शाम का समय था। भगवान श्री कृष्ण के पुत्र खेल रहे थे। खेल-खेल …
- अध्यात्म
क्या अपवित्र अवस्था (शौच, लघुशंका, Periods आदि) में पूजा-पाठ, नाम जप या मंत्र जप कर सकते हैं?
क्या भगवान की स्तुतियों का पाठ (जैसे कि विष्णु सहस्रनाम या गोपाल सहस्रनाम) अपवित्र अवस्था …