ब्रह्मचर्य ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है
ब्रह्मचर्य सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। इससे बढ़कर कोई दूसरा तप नहीं है। जो व्यक्ति अपने वीर्य को नष्ट नहीं होने देता, वह इस धरती पर देवता के समान है, भले ही वह मनुष्य के रूप में हो। लेकिन दुर्भाग्यवश आज हम इसे भूलकर, नीच इच्छाओं के दास बनकर जीवन जी रहे हैं। कहाँ हमारे पूर्वज — जो बलवान, तेजस्वी और आत्म-नियंत्रण से युक्त थे — और कहाँ हम — जो दुर्बल, आत्मबलहीन और अपने ही वीर्य को व्यर्थ करने वाले बन गए हैं! यह अंतर मानो आकाश और पाताल जितना बड़ा हो गया है। इस गहरे पतन का सबसे बड़ा कारण अगर कोई है, तो वह है — ब्रह्मचर्य का त्याग।
ब्रह्मचर्य ही स्वास्थ्य और जीवन का आधार है

हमारा सम्पूर्ण पतन ब्रह्मचर्य के नाश से ही हुआ है। हमारी खुशी, सेहत, तेज, बुद्धि, ताकत, आत्मबल, आज़ादी और धर्म — ये सभी पूरी तरह से ब्रह्मचर्य पर ही टिके हैं। ब्रह्मचर्य हमारे शरीर के स्वस्थ रहने की नींव है। जैसे किसी इमारत की नींव टूट जाए तो पूरी इमारत गिर जाती है, वैसे ही जब हमारा वीर्य नष्ट होता है, तो हमारा शरीर भी जल्दी ही कमजोर और बीमार हो जाता है। जैसे-जैसे ब्रह्मचर्य खत्म होता है, वैसे-वैसे हमारा स्वास्थ्य भी धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। जो व्यक्ति वीर्य को नष्ट करता है, वह लंबे समय तक स्वस्थ नहीं रह सकता। लेकिन जो इसे संभाल कर रखता है, वह कभी अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होता। सच कहें तो — ब्रह्मचर्य ही जीवन है और वीर्यनाश ही मृत्यु। अगर ब्रह्मचर्य नहीं है, तो किसी भी हालत में न तो सुख मिल सकता है, न सफलता।
ब्रह्मचर्य ही सुख, मोक्ष और महानता का मूल है

ब्रह्मचर्य ही इस दुनिया और अगले लोक में मिलने वाले हर सुख का आधार है। वही हमारे चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की जड़ है। वही मुक्ति दिलाता है। वीर्य कोई साधारण चीज़ नहीं है — यह बहुत अनमोल है। इसी के बल पर मनुष्य देवता बनता है, और इसके नाश से वह पतन को प्राप्त होता है। बिना ब्रह्मचर्य के कोई भी व्यक्ति उच्च स्थान या महानता को नहीं पा सकता। जो व्यक्ति वीर्य की रक्षा नहीं करता, वह कभी सच्चा धर्मात्मा, महात्मा या पवित्र आत्मा नहीं बन सकता।
निष्कर्ष: ब्रह्मचर्य ही है मूल शक्ति
इसलिए याद रखिए — ब्रह्मचर्य ही हमारे ज्ञान, वैभव और सौभाग्य की जड़ है। यही हमें भीतर से शक्ति देता है, और यही जीवन को महानता की ओर ले जाता है। इसलिए — ब्रह्मचर्य को अपनाइए और जीवन को सफल बनाइए।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज