इन नियमों से होगी ब्रह्मचर्य क्षति की भरपाई

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
ब्रह्मचर्य की भरपाई

ब्रह्मचर्य कोई साधारण संकल्प नहीं। यह एक दिव्य ऊर्जा है जो केवल क्रिया नहीं, चिंतन मात्र से भी नष्ट हो सकती है। इसलिए आकर्षण की दिशा को पहचानना और उससे दूर रहना अनिवार्य है।

1. जहाँ भी काम संबंधी आकर्षण हो – वहाँ से दूरी बना लें।

कोई भी बहाना – स्पर्श, संभाषण, चित्र, कल्पना – ब्रह्मचर्य भंग कर सकता है।
यह नियम अटल है।

    2. मन में काम चिंतन = ब्रह्मचर्य का मंथन।

    जैसे दही से मथकर मक्खन निकले, वैसे ही कामोत्तेजना से वीर्य बाहर निकलता है –
    कभी स्वप्न में, कभी अन्य रूपों में।
    तो पहले अपनी सोच को सही करो।

    3. 🚿 स्नान नियम:

    नाभि क्षेत्र को ठंडे जल से धोएं।
    शरीर में वीर्य की कोई थैली नहीं होती – यह ऊर्जा पूरे शरीर में व्याप्त है,
    इसे शीतलता व संयम से साधा जाता है।

    4. 🥗 भोजन नियम:

    आहार सुपाच्य, हल्का, सात्त्विक हो।
    कब्ज है तो ब्रह्मचर्य नष्ट होने का खतरा बढ़ता है।
    मीठा कम, खटाई और बासी अन्न पूर्णतः त्याज्य।

    5. 🧘‍♂️ आसन नियम:

    रोज़ 48 मिनट बिना हिले-डुले सिद्धासन या पद्मासन का अभ्यास करें।
    मेरुदंड सीधी रखें।
    यह अभ्यास वीर्य को अधोगामी नहीं, उर्ध्वगामी करता है।

    6. 🛏️ शयन नियम:

    6-7 घंटे से अधिक न सोएं।
    दाईं करवट अधिक लें।
    शयन करते समय चंचल मन को नाम जप में लगाकर ही नींद लें, वरना दोष बढ़ेगा।

    7. 👀 हर इंद्रिय का ब्रह्मचर्य:

    – आँख: किसी भी स्त्री/पुरुष को कामदृष्टि से ना देखें।
    – वाणी: केवल भगवद चर्चा करें।
    – कान: शास्त्र और साधु वाणी ही सुनें।
    यह इंद्रिय संयम ही सच्चा ब्रह्मचर्य है।

    8. 📿 नाम जप:

    यह ब्रह्मचर्य रक्षा का सबसे बलवान साधन है।
    हर संकट, हर चंचलता, हर उत्तेजना से नाम ही बचाएगा।
    नाम न छूटे – तो ब्रह्मचर्य न छूटे।

    9. 💡 ब्रह्मचर्य का अंतिम सूत्र:

    “ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल संयम नहीं,
    बल्कि हर इंद्रिय को सही दिशा देना है।
    जो वाणी बोले वह मधुकर हो, जो नेत्र देखे वह शुद्ध हो, जो कान सुने वह केवल प्रभु का नाम/चर्चा हो।”
    यही पूर्ण ब्रह्मचर्य है।

    मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

    श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ब्रह्मचर्य पर मार्गदर्शन करते हुए

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