जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता है, उसे इन बातों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। ये नियम सीमित ब्रह्मचारी (अर्थात, कुछ समय के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करके फिर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले) और आजीवन विरक्त रहने वाले, दोनों ही साधकों के लिए लाभदायक होंगे।
1. ब्रह्मचर्य के लिए वीर्य, प्राण और मन का आपसी संबंध
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वीर्य, प्राण और मन के बीच घनिष्ठ संबंध है। इनमें से एक भी असंतुलित हुआ तो तीनों प्रभावित हो जाएंगे। यदि वीर्य नष्ट हो गया, तो प्राण शक्ति कमजोर हो जाएगी, और मन चंचल, अशांत, मलिन तथा पापमय हो जाएगा। यदि मन विचलित हो गया, तो प्राण कमजोर हो जाएंगे और वीर्य रोकने की शक्ति समाप्त हो जाएगी। यदि प्राण स्थूल हो गए, तो मन चंचल हो जाएगा और वीर्य नष्ट हो जाएगा।
तीनों का यह घनिष्ठ संबंध है। इसलिए यदि आप इनमें से किसी एक को काबू में कर लेते हैं, तो सबकुछ संभलने लगेगा। मन को प्रभु के नाम जप में लगा दीजिए, या प्राण वायु को नाम जप करते हुए संशोधित करें, या ब्रह्मचर्य का पालन शुरू करें। एक भी सुधर गया तो तीनों सुधर जाएंगे। यदि ब्रह्मचर्य ठीक रहेगा, तो मन शांत और प्राण सूक्ष्म हो जाएंगे।
ब्रह्मचर्य के पालन के लिए कब्ज से बचना आवश्यक
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कब्ज़ नष्ट करने का बहुत ही सरल और सहज उपाय है। छोटी हरड़ को पीसकर एक डिब्बे में रख लें और इसबगोल की भूसी भी ले लें। एक कटोरी में दो चम्मच इसबगोल की भूसी और एक से डेढ़ चम्मच छोटी हरड़ का पाउडर डालकर अच्छे से मिला लें। इस मिश्रण को 250 ग्राम दूध के साथ लें। इसे एक हफ्ते तक नियमित रूप से लें। यह आतों को ठीक रखेगा और कब्ज की समस्या नहीं होने देगा।
मल का अवरुद्ध होना ब्रह्मचर्य के पालन में बड़ी बाधा बन सकता है, क्योंकि यह शरीर में गर्मी और विकार पैदा करता है। कब्ज कई प्रकार के रोगों का कारण बनती है। इसलिए ब्रह्मचारी को चाहिए कि सुबह उठकर कम से कम 500 ग्राम हल्का गर्म पानी वज्रासन में बैठकर धीरे-धीरे पिएं। इसके बाद 400 कदम टहलें और फिर शौच के लिए जाएं। ऐसा करने से कब्ज की समस्या दूर होगी।
2. ब्रह्मचर्य के लिए हानिकारक: मैदा, गरिष्ठ पकवान और चाय
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कब्ज पैदा करने वाली चीजें ब्रह्मचारी को बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए। 50 वर्ष की आयु तक चाय पीने की कोई आवश्यकता नहीं होती। 50 के बाद, यदि शरीर को गर्म रखने के लिए कभी-कभी चाय लेनी पड़े, तो यह स्वीकार्य है, लेकिन युवा साधकों के लिए चाय की कोई जरूरत नहीं है। ब्रह्मचारी को चाय, कॉफी या किसी भी प्रकार के व्यसन से दूर रहना चाहिए।
3. अत्यंत आवश्यक हो तो ही किसी को छुएं, अन्यथा किसी को न छुएं
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भगवद् मार्ग में चलने के लिए आपको सतर्क रहना चाहिए। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को छूते हैं, जिसका आचरण और विचार पवित्र नहीं हैं, तो उसके सभी नकारात्मक प्रभाव आपके ऊपर आ सकते हैं। इसलिये सतर्क रहें।
रोगी को छूने में कोई परहेज नहीं है। मान लीजिए, अगर आप किसी रोगी की सेवा में लगे हैं, तो उस समय कोई भी परहेज नहीं होना चाहिए। उसकी सेवा करें, क्योंकि आप भगवद् भाव से सेवा कर रहे हैं, और इस दौरान कोई नुकसान नहीं होगा।
बड़े-बूढ़े व्यक्तियों की सेवा में भी परहेज नहीं करना चाहिए, और गुरुदेव की सेवा में तो विशेष रूप से कोई परहेज नहीं होना चाहिए। लेकिन सामान्यत: किसी को छूने से बचें। दूरी बनाए रखें। यदि कोई आपको छू ले तो कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन अगर आपने किसी को छुआ तो परेशानी हो सकती है।
4. अश्लील बातें न करें
यदि आपको ब्रह्मचर्य का पालन करना है, तो गंदी बातों, भोग संबंधी विचारों और अश्लील बातों से दूर रहें।
5. ब्रह्मचर्य के पालन के लिए आंतरिक वैराग्य ज़रूरी
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सजना-सवरना, फैशनेबल कपड़े पहनना, श्रृंगार करना, बालों को काला करना—यह सब नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से शरीर, मन और बुद्धि तीनों रजो गुण से युक्त हो जाते हैं, और साधक का पतन शुरू हो जाता है। यह सब श्रृंगार साधक को नहीं करना चाहिए। शरीर राग त्यागना ही असली वैराग्य है। गर्मी, सर्दी सहना, गाली और अपमान सहना, दुख सहना—यही हमारा परम धर्म है। जब हम दुख, तिरस्कार, अपमान और निंदा सहते हैं, तब हमारा परमार्थ पुष्ट होता है।
वृंदावन की रज लगाना, महापुरुषों की चरण रज लगाना, तिलक करना, कंठी बांधना, और फिर भगवद् मार्ग पर चलना—यह सही पद्धति है। सात्विक वस्त्र पहनें, वैष्णव पद्धति से श्रृंगार करें, तिलक लगाएं, भगवद् प्रसादी चंदन लगाएं, भगवद् प्रसादी माला धारण करें।
6. वही आहार ग्रहण करें जो आपके स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त हो
अपना शरीर बलवान बनाए रखने के लिए सात्विक भोजन करें। ऐसी चीजें न खाएं या पिएं जो आपको अत्यधिक प्रिय हों।
7. इत्र, फुलेल और सुगंधित द्रव्यों का उपयोग ना करें
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ब्रह्मचारी के लिए सुगंधित द्रव्य, इत्र या फुलेल लगाना बिल्कुल निषेध है और इसे नहीं लगाना चाहिए।
8. प्रतिदिन नियमानुसार व्यायाम करें
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प्रतिदिन व्यायाम और प्राणायाम करें, जैसे दंड बैठक और अन्य आसन, ताकि ब्रह्मचर्य मजबूत हो सके। जवान व्यक्ति को 100-500 दंड बैठक करनी चाहिए। व्यायाम सभी साधकों के लिए आवश्यक है, चाहे वे गृहस्थ हों या विरक्त, क्योंकि यह एक प्रभावी औषधि है। साथ ही, भोजन उतना लें जितना आराम से पच सके।
9. भोजन को अच्छी तरह चबा-चबा कर खाएं
भोजन को अच्छी तरह चबा कर खाएं। भोजन को धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबा कर खाने से पाचन शक्ति बेहतर होती है, और स्वास्थ्य में सुधार होता है। अगर हम भोजन चबाकर खाएंगे, तो वह जल्दी पच जाएगा और ज्यादा पौष्टिक होगा। दांतों की सफाई भी जरूरी है, क्योंकि इससे पाचन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
10. ब्रह्मचर्य के लिए स्नान का महत्व
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ब्रह्मचारी साधक को तीन बार स्नान करना चाहिए। अगर आप तीन बार स्नान नहीं कर सकते, तो कम से कम दो बार स्नान अवश्य करना चाहिए।
11. अपने विचारों की जांच करें
रात्रि में सोते समय अपने विचारों का निरीक्षण करें—दिन भर में कितने मिनट गंदे विचार आए, वे किसके प्रभाव से आए, क्यों आए, और उन्हें कैसे हटाया जाए।
12. शुद्ध वायु और ताजगी: सही वेंटिलेशन का महत्व
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जहां आप रहते हैं, वहां ऐसा स्थान होना चाहिए जहां शुद्ध वायु मिलती रहे। कमरे को बंद न रखें; वेंटिलेशन और शुद्ध हवा के लिए दरवाजे और खिड़की खोलें, ताकि ताजगी बनी रहे।
13. प्याज, लहसुन और मांसाहारी भोजन का सेवन ना करें
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मांसाहार, प्याज, लहसुन और खटाई से ब्रह्मचर्य पालन में हानि होती है। संतों ने इनसे बचने की सलाह दी है क्योंकि ये तमोगुण उत्पन्न करते हैं और भजन में विघ्न डालते हैं। रात में रस्सेदार शाक, दही, छाछ, इमली, खटाई, अधिक तेल, लाल मिर्च और गरम मसाले का सेवन नहीं करना चाहिए। आपको रात्रि में यदि दूध पीना हो तो न ठंडा, न बहुत गर्म; हल्का गर्म करके पियें। दूध पीने के बाद 30 मिनट के लिए टहलें। उसके बाद ही आपको सोना चाहिए, अन्यथा ब्रह्मचर्य की हानि हो सकती है।
14. सात्विक दिनचर्या: दिन में विश्राम और रात्रि में हल्का भोजन
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दिन में सोना नहीं चाहिए, लेकिन 15 मिनट का विश्राम लिया जा सकता है। यदि आप रात में जागकर ड्यूटी करते हैं या नाईट शिफ्ट में कार्य करते हैं, तो दिन में सोने की अनुमति है। दोपहर में भोजन के बाद 15 मिनट का विश्राम करना चाहिए। सायंकाल का भोजन सात्विक होना चाहिए, गरिष्ठ पदार्थों से बचना चाहिए। सायंकाल में मूंग दाल और दो रोटी जैसा हल्का भोजन पर्याप्त है। हल्के भोजन के बाद, सोने से पहले आधा लीटर दूध पीना पर्याप्त है।
15. शुद्धता के नियम: भोजन से पहले और बाद की सही आदतें
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भोजन से पहले लघु शंका करें, अच्छे से हाथ और पैर धोएं, और कुल्ला करके भोजन करें। भोजन के तुरंत बाद भी लघु शंका करना चाहिए। यह आदत शरीर में गर्मी को नियंत्रित रखेगी, पित्त और कब्ज को रोकने में मदद करेगी। शयन से पहले भी लघु शंका करके, जननेंद्रिय को शीतल जल से प्रक्षालित करें।
16. मनोरंजन से बचें और व्यस्त रहें
साधक को समाचार नहीं सुनने चाहिए, टीवी नहीं देखना चाहिए, कोई भी सीरियल या अश्लील पुस्तक नहीं पढ़नी चाहिए। साधक का उद्देश्य केवल प्रभु के चिंतन में डूबना होना चाहिए, चाहे वह गृहस्थ हो या विरक्त। किसी भी प्रकार का मनोरंजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि मनोरंजन से सांसारिकता बढ़ती है और भजन की गंभीरता कम हो जाती है। यदि आपके पास समय हो, तो उसे प्रभु की सेवा में लगाएं या कोई अन्य घर का या ऑफिस का सेवा कार्य करें। ख़ाली ना बैठे रहें। मनोरंजन से बचें और सेवा में समय बिताएं।
17. किसी की निंदा ना करें, सत्संग सुनें और संतों का संग करें
किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए, ना ही किसी की समीक्षा करनी चाहिए कि वह ब्रह्मचारी है या नहीं। हमें भक्तों की संगति में रहना चाहिए, जहां भगवान की कथा हो रही हो। भक्तों की मंडली में सम्मिलित होने से वासना का नाश होता है और प्रभु की कृपा की प्राप्ति होती है।
18. सुबह जल्दी उठें
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सुबह जल्दी उठने का प्रयास करें, कम से कम 4-5 बजे तो उठ ही जाएं। यदि भगवान सूर्य उदित हो रहे हैं और आप सो रहे हैं, तो आपकी आयु, कीर्ति और यश सब नष्ट हो जाएंगे। नियम से चलने पर मन को नियंत्रित किया जा सकता है, क्योंकि नियम में बड़ी शक्ति है।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज