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1. भोजन के पहले
- हाथ, पैर, मुँह धोकर पवित्र हों
- चलते-फिरते, खड़े या लेटकर भोजन न करें
2. सात्विक आहार
- ताज़ा ऋतु के फल-सब्ज़ी
- गेहूं, चावल, जौ, मूँग, अरहर, चना
- गाय का दूध, घी, सेंधा नमक, शकरकंद
👉🏻 सात्विक आहार से ब्रह्मचर्य पुष्ट होता है, मन स्थिर होता है।
3. राजसिक आहार से बचें
तीखा, खट्टा, चटपटा, अत्यधिक गरम, प्याज़, लहसुन, मांसाहार आदि।
4. तामसिक आहार
- बासी, जला हुआ, दुर्गंधयुक्त
- बार-बार एक ही तेल में बना
- अत्यधिक मात्रा या अत्यधिक गरम खाना
👉🏻 राक्षसी वृत्ति पैदा करता है: रोग, आलस्य, क्रोध, दरिद्रता।
5. भोजन करते समय विचार संभालें
खाते समय जो भी विचार करेंगे, वही रस बनकर शरीर में जाएगा।
👉🏻 मोबाइल पर अशुद्ध सामग्री, विवाद या कामुक दृश्य देखते हुए भोजन न करें।
- भोजन के समय सत्संग, नाम-स्मरण या कीर्तन सुनें।
- स्थान को भी पवित्र बनाएँ: भगवत छवियाँ/संत समीप हों।
6. भोजन के समय और मात्रा
- दिन में 2 बार पर्याप्त (सुबह 10-1 बजे, रात 8 बजे से पहले)
- अधिक या बहुत कम भोजन – दोनों ब्रह्मचर्य के लिए घातक
- भोजन के बाद थोड़ी देर टहलें, तुरंत न सोएं
👉🏻 देर रात भारी भोजन = संयम नष्ट
7. जल सेवन और आदतें
- भोजन से 1 घंटा पहले या बाद में ही जल पिएं
- सुबह उठते ही ताँबे के पात्र का जल पीएं (कुल्ला किए बिना)
- दिनभर में 3 लीटर जल बैठकर धीरे-धीरे पीएं
👉🏻 इससे कब्ज़ और ब्रह्मचर्य में आने वाले दोष मिटते हैं।
8. अन्य दिनचर्या नियम
- जितना हो सके, गीजर के गर्म पानी से न नहाएं
- भूखे रहना या हर समय भर पेट रहना दोनों ही घातक
निष्कर्ष: भोजन वही जो शरीर और मन दोनों को शुद्ध करे।
समय, स्थान, मात्रा और विचार – चारों में सावधानी आवश्यक है।
👉🏻 शुद्ध आहार + शुद्ध दिनचर्या = स्थिर ब्रह्मचर्य और गहरी साधना।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज