आप भोजन केवल उतना ही लें जो बिना औषधि के आपकी आंतें पचा सकें और कब्ज न हो। यदि आप जिह्वा के स्वाद के वशीभूत होकर अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण करते हैं, और आपकी आंतों में पचाने की सामर्थ्य नहीं है क्योंकि आप पर्याप्त शारीरिक क्रिया नहीं करते, तो इससे बीमारियाँ हो सकती हैं। यदि आप आठ-दस घंटे नियमित शारीरिक गतिविधि करें, तो भोजन पच जाएगा। लेकिन बिना नियमित शारीरिक गतिविधि के गरिष्ठ पदार्थ (ज्यादा मिर्च, मसाला, तली चीज़ें) ग्रहण करने से आपकी दिनचर्या प्रभावित होगी और मन उदास रहेगा। कब्ज होने पर रोज़ाना की गतिविधियों में रुचि नहीं रहती, और आलस्य की स्थिति बनी रहती है।
शरीर पर कब्ज के प्रभाव
यदि आपने कब्ज़ का समाधान नहीं किया, तो आप बीमार हो सकते हैं। आंतों को मल से मुक्त होने की आवश्यकता होती है। अन्यथा, इतनी गर्मी उत्पन्न होगी कि आपकी गुदा में रोग हो सकता है। इससे गैस, एसिडिटी और अन्य कई परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। यदि पेट साफ नहीं हुआ और आप भोजन करते चले जा रहे हैं, तो आंतों में इतनी जलन और ताप उत्पन्न होगा कि मल प्लास्टिक की तरह कड़ा हो जाएगा, जो रोगों का कारण बनेगा। कब्ज़ से मुक्त होना है तो प्रातःकाल उठकर सबसे पहले गर्म पानी पियें। जितना आपकी क्षमता हो – आधा लीटर, पौन लीटर, एक लीटर, या सवा लीटर – उतना पानी पियें। वज्रासन में बैठकर आराम से धीरे-धीरे पानी पियें, और फिर थोड़ा टहल लें।
जब आपका पेट साफ रहेगा, तो आप प्रसन्न मुद्रा में अपना जीवन जी सकते हैं और भजन भी कर सकते हैं। अगर आपके जीवन में कठिन शारीरिक परिश्रम नहीं है तो आपकी आंतों में गरिष्ठ भोजन (जैसे कि समोसा या हलवा) पचाने की क्षमता नहीं है; ये उन लोगों के लिए हैं जो कड़ी मेहनत करते हैं, जैसे किसान या कठिन शारीरिक परिश्रम में लगे हुए लोग।
आपको तो बस प्राण पोषण के लिए सादा भोजन ( जैसे कि मूंग की दाल, घिया की सब्जी और दो रोटियाँ) ही चाहिए। खाने के बाद यदि आपको लगे कि आप अभी दो रोटियाँ और खा सकते हैं, तो वहीं रुक जाएँ, क्योंकि हमें भोजन में पानी भी शामिल करना है और पेट में वायु के लिए भी थोड़ी जगह खाली रखनी है। पेट को पूरी तरह भरने की आवश्यकता नहीं है। यदि आप ऐसा नहीं करते, तो फिर आपको वैद्य के पास जाना पड़ेगा, और आपको कब्ज, पेट में गर्मी, या धातु रोग जैसी शिकायतें होंगी।
कब्ज और ब्रह्मचर्य के बीच संबंध
यदि कब्ज रहेगा, तो स्वाभाविक रूप से वीर्यपात हो सकता है। अनुचित आचरण (हस्तमैथुन आदि) करने से नसें और नाड़ियाँ इतनी कमजोर हो जाएंगी कि बिना किसी प्रयास के वीर्यपात हो सकता है। मन की विविध वृत्तियों को नियंत्रित करने के लिए पहले हमें शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है। स्वस्थ रहने का अर्थ चर्बी बढ़ाना नहीं है, बल्कि संतुलित आहार लेना है। हल्का भोजन करें; भोजन कम हो, परंतु पर्याप्त हो। यह हमारी आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है, जबकि अधिक भोजन, भले ही सात्विक हो, अंततः तमोगुण उत्पन्न कर सकता है।
ओवरईटिंग की आदत – जरूरत से ज्यादा खाना
दूध सात्विक होता है और थोड़ी मात्रा में यह सतोगुण को प्रकट करता है, परंतु अधिक मात्रा में लेने से यही सतोगुण तमोगुण में परिवर्तित हो सकता है, जिससे प्रमाद (procrastination) की स्थिति उत्पन्न होती है।
क्यों मन के चक्कर में फँस रहे हो? संयम से चलो। यदि पेट साफ नहीं है, तो भोजन मत लो। सलाद खाकर काम चला लो। इससे अपने आप पेट साफ हो जाएगा, और सुबह उठते से ही गर्म पानी पियो, आप पूरी तरह खाली और हल्का महसूस करोगे। एक दिन ऐसा करके देख लो, चार रोटियों में आपका काम चल जाएगा। अगर सुबह-सुबह भोजन की आवश्यकता नहीं है, उसे मत लो। पेट साफ हो नहीं रहा, और आप दिन में तीन-चार बार खाते चले जा रहे हैं, इससे तो आपकी आँतों में मल की परतें जम जाएँगी और शरीर फूलता जाएगा। शरीर को हल्का और स्वस्थ रखना बहुत आवश्यक है, वरना रोजमर्रा के काम भी पूरे नहीं होंगे, और भजन करने का तो सवाल ही नहीं उठता।
माइंडफुल ईटिंग – सेहत के लिए फायदेमंद
प्राण पोषण के लिए 24 घंटे में चार-पाँच रोटी और सब्जी पर्याप्त है। संतों ने तो कई-कई दिनों तक बिना भोजन के भजन में लीन होकर जीवन बिताया है। अधिक स्वादिष्ट पदार्थ आपका ब्रह्मचर्य बनाए नहीं रख सकते। अधिक स्वादिष्ट भोजन से आंतें कमजोर हो जाएंगी और पाचन संभव नहीं होगा। अगर आप आठ-दस घंटे की कड़ी शारीरिक मेहनत कर रहे हैं, जैसे फावड़ा चलाना, हल जोतना, या दौड़-भाग करना, तो शरीर अधिक भोजन पचा लेगा। लेकिन जब आपके पास ऐसी सेवाएँ नहीं हैं, और आप केवल जिह्वा की तृप्ति के लिए खाते जाते हैं, तो यह आपके लिए परेशानी का कारण बनेगा।
जैसे भोजन आवश्यक है, वैसे ही जल और वायु भी आवश्यक हैं। आप मूर्खतावश इस शरीर रूपी गाड़ी को नष्ट कर रहे हैं और अपनी यात्रा को बाधित कर रहे हैं। भोजन का एक सिद्धांत है: पेट का एक हिस्सा अन्न, एक हिस्सा पानी, और आधा हिस्सा वायु के लिए खाली रखें। ऐसा करने पर आप देखेंगे कि आपकी ऊर्जा शक्ति बढ़ेगी और भजन की रुचि भी बनी रहेगी। लेकिन जब पेट में चारों हिस्से में केवल अन्न भर जाता है, और ऊपर से पानी पीने की रुचि नहीं रहती, तो आपके अंदर विषैले पदार्थ उत्पन्न होंगे। जल जब शरीर में जाता है, तो लघु शंका के माध्यम से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालता है और आंतों में जाकर मल को गीला करके मलाशय से बाहर निकालने में सहायता करता है।
जीवन का लक्ष्य क्या है?
आपका जीवन स्वस्थ होना चाहिए। अगर अचानक कोई असाध्य रोग आता है, तो भगवान सामर्थ्य देते हैं, लेकिन यदि आप खुद अपना नाश कर रहे हैं, तो यह आपकी गलती है। अधिक भोजन करने वाला व्यक्ति कभी भजन में रुचि नहीं ले सकता। सूक्ष्म भोजन करने वाला व्यक्ति ही भजन में स्थिर रह सकता है। अगर आपके पेट में कब्ज है, तो दो दिन का उपवास करें और केवल पानी पियें। इससे पेट अपने आप साफ हो जाएगा। लेकिन यदि आप स्वादिष्ट भोजन अधिक मात्र में खाते रहेंगे, तो क्या आप सोचते हैं कि भजन में रुचि जागेगी या आपका ब्रह्मचर्य स्थिर रहेगा? क्या केवल जिह्वा की तृप्ति ही हमारे जीवन का उद्देश्य है? कब तक खाते रहेंगे? शरीर को कब तक पोषित करते रहेंगे? यह एक दिन नष्ट होगा। जिस कार्य के लिए इस दुनिया में आए हैं, उस उद्देश्य को पूरा कीजिए।
ब्रह्मचर्य: पुरानी ग़लत आदतें और परिणाम
यदि आप गलत क्रियाएं, जैसे हस्तमैथुन या गलत संबंध, नहीं कर रहे हैं और आपका पेट साफ है, तो ब्रह्मचर्य स्वाभाविक रूप से नष्ट नहीं होता। अगर किसी का वीर्य हर आठ-दस दिन में स्वतः निकलता है, तो यह वर्षों से नियमित रूप से ऊर्जा का अपव्यय करने का परिणाम है। अगर आप अपनी जननेंद्रिय (penis) को नहीं छेड़ते हैं, तो धीरे-धीरे इसका नियंत्रण बनने लगेगा, और एक दिन आप ब्रह्मचर्य में स्थिर हो सकते हैं। यदि आप गलत आहार या विचारों में लगे रहते हैं, तो ही वीर्य का स्वतः प्रवाह हो जाएगा—यह आपकी गलतियों का परिणाम है।
महाभारत में भीष्म जी बताते हैं कि शरीर में एक ‘मनोवाह नाड़ी’ होती है। जब इसे ताप नहीं पहुंचता, तो वीर्यपात संभव नहीं होता। इस ताप की दो मुख्य प्रक्रियाएं हैं: पहला, गलत चिंतन (यौन विचारों में लिप्त रहना), और दूसरा, गलत क्रिया (हस्तमैथुन या अन्य गलत संबंध)। यदि आपने कामासक्त होकर चिंतन किया, तो यह कामाग्नि मनोवाह नाड़ी को गरम कर देगी और आपके वीर्य का नाश कर देगी।
आपकी दिनचर्या और खानपान पूरी तरह संयमित होना चाहिए। यदि आप गंदी फिल्में देखते हैं और हस्तमैथुन जैसी अनुचित हरकतें करते हैं, तो दुनिया में कोई वैद्य नहीं है जो आपको ब्रह्मचारी बना सके। आज छोटे-छोटे बच्चे भी धातु रोग, कमर दर्द और आंखों की कमजोर दृष्टि जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं, और इसके पीछे कारण हम स्वयं हैं। इस विषय पर न कोई चर्चा करना चाहता है, न कुछ सुनना चाहता है—बस पशुवत आचरण के लिए छूट मिल जाए, यही अपेक्षा है।
सावधान रहिए, यह जीवन कोई खिलवाड़ नहीं है। चाहे आप गृहस्थ हों या साधक, ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। यह आपको एक अच्छा गृहस्थ बनाएगा और एक सच्चा उपासक बनने में मदद करेगा। यदि आप इसे यूं ही क्षीण करते रहेंगे, तो भविष्य में आप किसी कार्य के लायक नहीं रह जाएंगे। कुछ समय बाद आपके शरीर में विभिन्न प्रकार की पीड़ाएँ होने लगेंगी, आपके चिंतन की शक्ति कमजोर हो जाएगी, आपकी स्मरण शक्ति क्षीण होने लगेगी, और अंततः आप अवसाद (Depression) का शिकार हो जाएँगे।
जीने के लिए खाओ, खाने के लिए मत जियो
भोजन का उद्देश्य केवल प्राण पोषण है, न कि स्वाद की तृप्ति। हमें इंद्रियों के विषयों में नहीं फँसना चाहिए। कुछ दिन इस तरह का जीवन जीकर देखिए। यह भी नहीं कि हम हठपूर्वक बहुत कम भोजन करें। उचित और संतुलित भोजन करें। यदि कमजोरी महसूस हो तो दूध और फलों का सेवन कर सकते हैं, लेकिन यदि आवश्यकता नहीं है तो रहने दें। यदि हमारा एक बार भोजन करने से काम चल जाता है, तो दिन में तीन बार खाने की आवश्यकता नहीं है।
निष्कर्ष
अगर आप अभी सावधान नहीं हुए, तो आगे चलकर आपका शरीर और कमजोर होगा, स्थिति के अनुसार और भी रोग आ सकते हैं, फिर आप क्या करेंगे? पेट बढ़ता चला जा रहा है, शरीर में चर्बी बढ़ रही है, उठने-झुकने में परेशानी हो रही है, ऐसे में आप अपने कर्तव्य का पालन और भजन कैसे करेंगे? अभी यदि आप ठीक से आहार लें, तो आपका शरीर अपने आप सही हो जाएगा, आपको किसी दवाखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपका तप बढ़ेगा, पवित्रता बढ़ेगी, तेज बढ़ेगा और भजन में भी वृद्धि होगी। अल्पाहार करें, आप शांत और प्रसन्न रहेंगे। पेट साफ हो, शरीर स्वस्थ हो, और मन बुद्धि सतोगुण में स्थित हो, तो आनंद मिलेगा। दो रोटियां दोपहर के लिए, दो रोटियां शाम के लिए लें, और खूब भजन करें।
भोजन कभी अमृत तो कभी जहर हो सकता है। आपका जो समय बर्बाद हो रहा है, जैसे अधिक नींद, नाम जप में निरंतरता की कमी – इसका मुख्य कारण आपका आहार ही है। संयम से चलिए। आज से केवल उतना भोजन करें कि आपकी पढ़ाई या नौकरी/व्यवसाय/कार्य में थकान न हो, प्रमाद की स्थिति न बने, पेट में कब्ज न हो और मन प्रसन्न रहे। सूखी रोटी और दाल खाने वाले का मन कामुक चिंतन में नहीं जाता। हलवा, पूरी, कचौड़ी, रसगुल्ला खाकर देखिए, अगर मन काम भावना का चिंतन न करने लगे, तो हमें बताइएगा।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज