इन 8 आदतों से होता है ब्रह्मचर्य का नाश – इनसे बचें

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
ब्रह्मचर्य का नाश
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ब्रह्मचर्य के बिना कोई भी व्यक्ति, जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता — चाहे वह गृहस्थ हो, वानप्रस्थ हो या संन्यासी। सबके लिए ब्रह्मचर्य अत्यंत आवश्यक है। ब्रह्मचर्य का पालन ही जीवन है, परम पुरुषार्थ है, और अध्यात्म है। जो ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते, वे न तो सच्चे गृहस्थ बन पाते हैं, न वानप्रस्थ और न ही संन्यासी। यहाँ तक कि लौकिक शिक्षा या लौकिक उन्नति के लिए भी ब्रह्मचर्य अत्यंत आवश्यक है। जब तक भोग बुद्धि हमारे हृदय में बनी रहती है, तब तक न लौकिक उन्नति संभव है, न पारलौकिक। आज की बड़ी दुर्दशा यह है कि ब्रह्मचर्य का उपहास करके उसका नाश किया जा रहा है। पूज्य उड़िया बाबा जी कहते हैं कि अष्ट मैथुन के द्वारा ब्रह्मचर्य का नाश होता है।

1. अष्ट मैथुन में पहला — काम संबंधी दृश्य, विचार या चिंतन

ब्रह्मचर्य का नाश – काम संबंधी दृश्य, विचार या चिंतन

जब हम किसी काम संबंधी बात को पढ़ते हैं, किसी काम-क्रीड़ा को देखते हैं (चाहे वह पशु-पक्षी की ही क्यों न हो), या कोई अश्लील चित्र, सिनेमा, या मोबाइल आदि पर कोई दृश्य देखते हैं, तो हमारे भीतर काम का चिंतन जन्म लेता है। केवल एक मछली के मैथुन को देखने मात्र से सौभरि ऋषि का मन, जो पहले भगवान के चिंतन में लीन था, स्त्री चिंतन में फिसल गया और उन्होंने पचास राजकुमारियों से विवाह कर लिया। हमारे शरीर में वीर्य की कोई अलग थैली नहीं होती, जैसे पित्त की थैली या मूत्राशय होते हैं। हमारे शरीर में मनोवाह नाड़ी को ही “रक्त की मथानी” कहा गया है। जब हम गाढ़ चिंतन करते हैं, विशेष रूप से काम का, तो यह मथानी पूरे शरीर से रक्त को खींचकर वीर्य को एकत्रित कर देती है। परिणामस्वरूप वह वीर्य या तो सोचते समय नष्ट हो सकता है, या रात्रि में स्वप्न के माध्यम से निकल जाता है। इसलिए एक उपासक को अष्ट मैथुन के पहले मैथुन — अर्थात काम विषयक चिंतन, दर्शन या पढ़ने — का त्याग करना चाहिए। न तो वह ऐसी कोई किताब पढ़े जिसमें काम विषयक बातें हों, न किसी जीव को मैथुन करते हुए देखे, न कोई अश्लील चित्र देखे और न ही उसका चिंतन करे। यदि चिंतन बन गया, तो समझो पहला मैथुन हो गया।

2. अष्ट मैथुन में दूसरा — अश्लील वार्ता और चर्चा

ब्रह्मचर्य का नाश – अश्लील वार्ता और चर्चा

जब चार पुरुष बैठकर स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग का वर्णन करते हैं, काम संबंधी बातें करते हैं, या यह चर्चा करते हैं कि काम सुख में कितना आनंद है — तो इस प्रकार की अश्लील वार्ता से हृदय में काम का चिंतन उत्पन्न होता है। हमें चाहिए कि हम चार लोग बैठें और भगवान की चर्चा करें — उनके रूप, गुण, लीला, और महिमा का स्मरण करें। लेकिन यदि हम स्त्री संबंधी चर्चा करें, काम विषयक बातें करें, या काम सुख की चर्चाएँ करें, तो हमारी मनोवाह नाड़ी सक्रिय हो जाती है। यह नाड़ी शरीर के रक्त को मथ कर वीर्य को एकत्रित करती है और वह किसी भी माध्यम से बाहर निकल सकता है — चाहे सोचते हुए, या सपने में।

3. अष्ट मैथुन में तीसरा — एकांत में इशारे, हास्य-विनोद, और स्पर्श

ब्रह्मचर्य का नाश – काम संबंधी दृश्य, विचार या चिंतन

जब कोई व्यक्ति एकांत में किसी के साथ इशारे करता है, हँसी-मजाक करता है, उन्हें काम-भाव से स्पर्श करता है, या उनके पास बैठकर काम का चिंतन करता है — तो मन में वही विकार उत्पन्न होता है, और अंततः वही दुर्दशा होती है जो पहले कही गई। कभी भी, कहीं भी, किसी भी प्रकार से ब्रह्मचर्य का साधन करने वाले को स्त्रियों के साथ एकांत सेवन नहीं करना चाहिए। यह सारी बातें महिलाओं पर भी लागू होती है। इंद्रियाँ अत्यंत बलवान होती हैं, वे बड़े-बड़े विद्वानों को भी आकर्षित कर के गिरा देती हैं। इसलिए सजग रहें। यह भ्रम न पालें कि हम संयमी हैं या हमें कुछ नहीं होगा। ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए विपरीत शरीरों के साथ एकांत का त्याग, दृष्टि का संयम, और संगति की सावधानी परम आवश्यक है।

4. अष्ट मैथुन में चौथा — छुपकर या चोर दृष्टि से किसी स्त्री को काम-भाव से देखना

ब्रह्मचर्य का नाश – छुपकर या चोर दृष्टि से किसी स्त्री को काम-भाव से देखना

जब कोई व्यक्ति किसी स्त्री को चोर दृष्टि से, काम-भाव से देखता है — यह भी ब्रह्मचर्य का घातक उल्लंघन है। “चोर दृष्टि” का अर्थ है — वह स्त्री न देख रही हो, लेकिन व्यक्ति चोरी से, गुप्त रूप से, एकाग्र होकर उसे काम दृष्टि से देख रहा हो। यह व्यवहार भी उसी प्रकार का पतन है, जैसा कि पहले तीन प्रकारों में बताया गया है।

5. अष्ट मैथुन में पाँचवाँ — स्त्रियों की मुस्कुराहट, उनके हाव-भाव, कटाक्ष और उनसे काम संबंधी वार्ता

ब्रह्मचर्य का नाश – एकांत में इशारे, हास्य-विनोद, और स्पर्श

अष्ट मैथुन का पाँचवाँ प्रकार है — किसी के साथ काम भावना से मुस्कुराना, हाव-भाव दिखाना, कटाक्ष करना या काम से जुड़ी वार्ता करना। यह दिखने में साधारण प्रतीत होता है — कभी मुस्कुरा दिया, कभी आँखों से इशारा कर दिया, कभी कोई हल्का फुल्का काम भाव से मज़ाक या वार्ता कर ली — लेकिन यह सब काम का बीज बन जाता है। भले आगे कोई मिलन न हो, लेकिन वह मुस्कुराहट, वह हाव-भाव, वह कटाक्ष — मन में लगातार चिंतन का रूप ले लेता है।

6. अष्ट मैथुन में छठवाँ — शरीर का श्रृंगार करना

ब्रह्मचर्य का नाश – शरीर का श्रृंगार करना

जब हम अपने शरीर को सजाते हैं, तो हमारे भीतर रजोगुण जागृत होता है, और रजोगुण से ही काम का जन्म होता है। ब्रह्मचारी को शरीर की सजावट नहीं करनी चाहिए। श्रृंगार का उद्देश्य प्रभु की सेवा होना चाहिए, न कि स्वयं को आकर्षक दिखाना। स्नान केवल शुद्धता और दिनचर्या के लिए होना चाहिए। यदि कोई श्रृंगार करना भी हो तो केवल वैष्णव भावना से — जैसे प्रभु की प्रसादी माला, प्रभु का चंदन, प्रभु की चरण रज लगाना, प्रसादी इत्र, या प्रसादी उच्छिष्ट — यही एक ब्रह्मचारी का वास्तविक श्रृंगार है। अगर श्रृंगार इसलिए किया जा रहा है कि हम अच्छे लगें, तो वह अहंकार और काम भाव को पोषण देता है। इसलिए ब्रह्मचर्य धारण करने वाले को चाहिए कि वह बाहरी श्रृंगार से बचे। क्रीम, सुगंधित पदार्थ, आकर्षक वस्त्र आदि केवल देह-अभिमान को बढ़ाते हैं और अंततः पतन का कारण बनते हैं।

7. अष्ट मैथुन में सातवाँ — भोग की बातें सुनकर उसे प्राप्त करने का प्रयास करना

जब हम बार-बार भोग संबंधी बातें सुनते हैं — तो धीरे-धीरे हमारा चित्त उसी में डूबने लगता है। मन चंचल होकर भोग की प्राप्ति के मार्ग खोजने लगता है —”भोग पाने के लिए कहाँ जाएँ?” “कैसे किसी से मिले?” — और इस पागलपन में ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है।

8. अष्ट मैथुन में आठवाँ — संभोग (शारीरिक संबंध) एवं हस्तमैथुन (Masturbation)

ब्रह्मचर्य का नाश – शारीरिक संबंध एवं हस्तमैथुन

इसमें स्पष्ट रूप से संभोग किया जाता है, या फिर स्वयं ही हस्तमैथुन (Masturbation) के द्वारा काम सुख की पूर्ति की जाती है। यह विकार इतना व्यापक और भीषण हो चुका है कि बच्चे तक इसकी चपेट में आ रहे हैं। यह कुसंग और अश्लीलता के प्रसार का परिणाम है।

हस्त मैथुन — एक घातक विकृति

हस्त मैथुन — एक घातक विकृति

यह एक अत्यंत गुप्त परंतु बेहद हानिकारक आदत है, जो शरीर को भीतर से खोखला कर देती है — जिस प्रकार लकड़ी में घुन लग जाए और वह केवल ऊपर से ही ठोस दिखे, वैसे ही यह क्रिया व्यक्ति को अंदर से नष्ट कर देती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि आज कुछ डॉक्टर तक इसे “सामान्य” बता देते हैं। यह बुद्धि का भ्रम और समाज का पतन है। अस्थायी सुख की अनुभूति में, बच्चे, युवा — इस भ्रमजाल में फँस जाते हैं, और अंततः अपने जीवन की शक्ति, तेज, मानसिक स्थिरता, और आत्मबल को खो बैठते हैं। अष्ट मैथुन और हस्त मैथुन — सभी सद्गुणों का नाश करके नरक की ओर ले जाते हैं।

नोट: यदि आप स्वप्नदोष या अत्यधिक हस्तमैथुन की आदत से जूझ रहे हैं या ब्रह्मचर्य बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, तो ये लेख आपके लिए मददगार होंगे:
1. स्वप्नदोष को कैसे रोकें?
2. हस्तमैथुन के दुष्प्रभाव
3. ब्रह्मचर्य के लिए आवश्यक भोजन और दिनचर्या के नियम
4. काम वासना पर विजय कैसे प्राप्त करें?
5. ब्रह्मचर्य पर मोबाइल फोन के हानिकारक प्रभाव

6. ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम
7. गंदी फिल्में देखना कैसे छोड़ूँ? मैं हार चुका हूँ !!

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज अष्ट मैथुनों से बचने पर मार्गदर्शन करते हुए

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