कई लोग बिल्ली के रास्ता काटने, अशुभ दिनों या अशुभ अंकों को अपशकुन मानते हैं। क्या यह अंधविश्वास है? जब तक हम भगवान का आश्रय नहीं लेते और उनका भजन नहीं करते, तब तक शुभ भी अशुभ ही है, और अशुभ तो अशुभ है ही। जब हम प्रभु की शरण लेंगे, तो शुभ-अशुभ का नाश हो जाएगा, और हमें अखंड प्रसन्नता प्राप्त होगी। प्रभु की शरण में जाने पर कोई भी अपशकुन हमारा अमंगल नहीं कर सकता। कोई भी ग्रह-नक्षत्र या देवी-देवता हमारा अमंगल नहीं कर सकते। भगवान अपने शरणागत की हर समय स्वयं रक्षा करते हैं।
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी।
जिमि बालक राखइ महतारी।।
श्री रामचरितमानस
मैं सदा अपने भक्तों की वैसे ही रखवाली करता हूँ, जैसे माता बालक की रक्षा करती है।
जड़भरत जी की कथा
जड़भरत जी का वास्तविक नाम भरत था। अपने पिछले जन्म में वे स्वायंभुव वंशी ऋषभदेव जी के पुत्र थे। उस जन्म में, एक मृग के शावक से अत्यधिक आसक्ति के कारण, मृत्यु के समय उन्होंने उसके बारे में सोचा, जिससे उन्हें मृग का शरीर प्राप्त हुआ। मृग के शरीर में रहते हुए उन्हें संतों का संग प्राप्त हुआ। जब उन्होंने मृग शरीर का त्याग किया, तो उन्हें ब्राह्मण के रूप में पुनर्जन्म मिला। ब्राह्मण का शरीर पाकर भी, उन्हें अपने पिछले जन्म का ज्ञान पूर्ण रूप से याद था। उन्होंने सोचा कि इस जीवन में उनकी भक्ति में कोई बाधा न आए, इसलिए उन्होंने जानबूझकर पागलों जैसा व्यवहार करना शुरू किया। जड़भरत जी के परिवार वाले उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करते थे। वे इधर-उधर मजदूरी करते और जो भी भोजन मिलता, खा लेते। जहां भी जगह मिलती, वहीं सो जाते। वे सुख-दुख और मान-अपमान को समान मानते थे। शारीरिक रूप से वे बहुत स्वस्थ और बलिष्ठ थे।
उन्हीं दिनों एक डाकू संतान प्राप्ति के लिए किसी व्यक्ति की बलि भद्र काली को चढ़ाने की तैयारी कर रहा था। जब बलि का समय आया, तो जिसे बलि देना था वह भाग गया। डाकू ने अपने आदमियों को आदेश दिया कि वे किसी और को पकड़कर लाएं। डाकू के आदमियों की नजर जड़भरत पर पड़ी, जो स्वस्थ और बलवान दिख रहे थे। वे उन्हें पकड़कर ले गए। डाकू ने जड़भरत को स्वादिष्ट भोजन कराया और उन्हें माला पहनाकर भद्रकाली के सामने बलि के लिए बैठा दिया। जैसे ही डाकू ने खड्ग उठाया और उन पर चलाने का प्रयास किया, देवी हुंकार के साथ प्रकट हुईं। उन्होंने डाकू के हाथ से खड्ग छीनकर उसी से उसका सिर काट दिया। यह देखकर बाकी डाकू भाग खड़े हुए।
भगवान की शरण लें
यदि कोई भगवान के शरणागत भक्त का अमंगल करने की कोशिश करता है, तो उसका सर्वनाश निश्चित है। हमें जीवन में डर इसलिए लगता है क्योंकि हमने भगवान का आश्रय नहीं लिया। भगवान ‘कर्तुम अकर्तुम अन्यथा कर्तुम समर्थ’ हैं, अर्थात् वे संभव को असंभव और असंभव को संभव कर सकते हैं। जहाँ से सुई का धागा भी नहीं जा सकता, वहाँ प्रभु अनंत ब्रह्मांडों को पार करा सकते हैं। यदि हम ऐसे सर्वसामर्थ्यशाली प्रभु पर भरोसा कर लें और फिर हमारा कुछ नुकसान हो जाए, तो इसमें क्या परेशानी है? वे हमारे लिए नई सृष्टि रच देंगे! वे हमारे मालिक हैं, और जो हुआ है वह उनके विधान से हुआ है; इसमें अवश्य हमारा ही कल्याण होगा। एक भक्त की यही सोच होती है, और इसी कारण वह मृत्यु के समय भी भयभीत नहीं होता। यदि आप प्रभु का आश्रय नहीं लेंगे, तो छोटी-छोटी बातों में भी आप परेशान हो जाएँगे।
जिसके हृदय में भगवान का स्मरण है, उसका कोई अमंगल नहीं कर सकता। लेकिन यदि हमारा अहंकार बड़ा हुआ है, तो प्रभु उसका इलाज करने के लिए हमें कुछ कष्ट दे सकते हैं, जिससे हमें लग सकता है कि भगवान ने हमारी रक्षा नहीं की। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि हमारे विकार नष्ट हों और हम उनके और अधिक निकट आ सकें। इसलिए बड़े-बड़े भक्तों के जीवन में भी उतार-चढ़ाव देखे जाते हैं।
सुने री मैंने निरबल के बल राम।
पिछली साख भरूँ सन्तन की, अड़े सँवारे काम॥
श्री सूरदास, सूरसागर
मैंने सुना है कि निर्बल के बल भगवान हैं। प्राचीन संत भी साक्षी हैं कि जो अपने आपको भगवान के भरोसे छोड़ देते हैं, उनके सभी बिगड़े काम प्रभु स्वयं सँवार देते हैं।
सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासू।
बड़ रखवार रमापति जासू॥
श्री रामचरितमानस
लक्ष्मीपति भगवान जिसके बड़े रक्षक हों, भला, उसकी सीमा (मर्यादा) को कोई दबा सकता है?
पूर्व जन्मों के कर्म – उतार-चढ़ाव का अर्थ
जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनसे आप प्रभु की रक्षा को लेकर प्रश्न उठाने लगते हैं। यह सब पूर्व कर्मों के अनुसार होता है, और हम इस बारे में नहीं जानते, इसलिए यह प्रश्न खड़ा हो जाता है कि यदि भगवान मेरी रक्षा कर रहे थे, तो मेरे साथ ऐसा कैसे हुआ। यदि आपको अपने पुराने कर्म और चरित्र के बारे में जानकारी होती, तो आपको लगता कि जो हुआ, वह सही हुआ। बड़े-बड़े संतों के जीवन में भयानक रोग और कष्ट देखे जाते हैं, तब प्रश्न उठता है कि भगवान का भजन करने पर भी इन्हें ऐसी पीड़ा क्यों होती है। यह पूर्व कर्मों का फल होता है। अनंत जन्मों के हिसाब को प्रभु छोटे-मोटे कष्ट देकर निपटाते हैं और उन्हें परमपद तक ले जाते हैं। हम अज्ञान के कारण यह नहीं समझ पाते।
यदि आपने भगवान का आश्रय लिया है, तो आपके जीवन में भय, चिंता, और शोक नहीं होगा। आप निर्भय, निश्चिंत, और निःशोक हो जाएँगे। ये छोटी-छोटी बातें तब तक हमें सुख या दुख देती रहती हैं, जब तक हमें सुख-समुद्र स्वरूप भगवान का अनुभव नहीं होता। शुक्र-शनि, ग्रह-नक्षत्र – किसी में इतनी ताकत नहीं कि भगवान के शरणागत का अमंगल कर सकें।
राधाबल्लभ भजत भजि, भली-भली सब होइ ।
जिते विनायक शुभ-अशुभ, विघ्न करें नहिं कोई ॥
विघ्न करें नहिं कोई डरें कलि-काल कष्ट भय ।
हरैं सकल संताप हरषि हरि नाम जपत जय ॥
श्री हित सेवक वाणी, 10.5 (श्रीहित भक्त – भजन प्रकरण)
भगवान का भजन करने वालों का सब प्रकार से भला होता है। जितने शुभ अथवा अशुभ विघ्नराज हैं वे विघ्न नहीं करते। यहाँ तक कि दुर्बुद्धि पूर्ण कलियुग के द्वारा मिलने वाले अनेक प्रकार के कष्ट तथा काल भी उनसे डरने लगते हैं।
शांति और आनंद का मार्ग
प्रभु का नाम जपें और उनका आश्रय लें, तब कोई भी शोक आपको शोकित नहीं कर सकता। जीवन में शंका, संशय, घबराहट आदि तब तक ही बनी रहती हैं जब तक हम सर्वसमर्थ भगवान का आश्रय नहीं लेते। अपने घर-गृहस्थी के कार्यों को भगवदर्पण करके रोज़ाना कुछ समय ऐसा निकालें जिसमें आप नाम जाप, कीर्तन, और भगवान के चरित्रों का गान करें। चलते-फिरते राम, कृष्ण, हरि, या प्रभु का जो भी नाम आपको प्रिय हो, उसका स्मरण और जप करें। शुरुआत में, आप 24 घंटों में मात्र 24 मिनट भजन करने का नियम लें—यह आपके रोम-रोम को आनंदित कर देगा और आपके जीवन में परिवर्तन लाएगा। लेकिन यदि हम भगवान के लिए समय नहीं निकालते, तो हमें अपने कर्मों के परिणाम भोगने पड़ेंगे। इसका समाधान केवल भजन से ही हो सकता है; किसी झाड़-फूंक या कलावा बांधने से इसका हल नहीं निकल सकता।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
ना भुक्तं क्षीयते कर्म कल्प कोटि शतैरपि
जो भी शुभ या अशुभ कर्म किया जाता है, उसका फल भोगना ही पड़ता है। करोड़ों कल्प बीत जाने के बाद भी बिना भोगे कर्म का क्षय नहीं होता।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज