यदि किसी व्यवसाय में कोई कर्मचारी है, तो वह मालिक के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। उसके पास समान अधिकार हैं, लेकिन वह मालिक नहीं है। यदि वह मालिक बनने की कोशिश करता है, तो वह दंड का पात्र होगा। इसी तरह, आपका घर, आपका शरीर, आपका परिवार, यह सब भगवान का है। आपका नहीं । भगवान माया के मालिक हैं। आप खुद को मालिक मानने लगे हैं। श्री गोपाल सहस्त्रनाम स्तोत्रम् में एक शब्द है जो इस प्रकार है – “जगन्नाटक वैभव:”
यह दुनिया एक रंगमंच है। आपने गलती से यह खेल खेलने का फैसला कर लिया है और आप भूल गये हैं कि आप यहाँ बस एक भूमिका निभाने आये थे। भूमिका अस्थायी है, लेकिन आप नाटक को सत्य मान बैठे हैं। आप राग और द्वेष के द्वंद्व में फँस गये हैं। इसलिए इस मृत्यु लोक का कानून आपको बांध लेगा। इस एक कहानी के माध्यम से और अच्छे से समझते हैं!
चित्रकेतु महाराज की कहानी
चित्रकेतु नाम का एक राजा था। श्रीमद्भागवत में इस लीला का वर्णन है। देवर्षि नारद जी और अंगिरा जी उससे बहुत प्रेम करते थे। एक बार वे बिना बुलाए उसके पास गए, वह चिंतित बैठा था। उन्होंने कहा, हे राजन, हम आपको परम आनंद का उपदेश देने आए हैं, आप चिंतित क्यों हैं? उसने कहा, कृपया मुझे उपदेश न दें। मुझे परम आनंद का प्रवचन नहीं चाहिए, मुझे पुत्र चाहिए। उन्होंने उससे कहा कि तुम्हारे भाग्य में तुम्हारे कर्मों के कारण पुत्र का सुख नहीं लिखा है। उसकी बहुत सी रानियाँ थीं, लेकिन एक भी संतान नहीं हुई। इसी कारण से वह विवाह करता रहा। जब उन्होंने देखा कि राजा बहुत हठ कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा, आपको पुत्र तो प्राप्त होगा, लेकिन वह सुख-दुख दोनों लेकर आएगा। राजा ने ये शब्द ध्यान से नहीं सुने, क्योंकि उसकी बुद्धि मोह से ग्रसित थी। उसने केवल यह सुना कि मुझे पुत्र होगा और वह बहुत प्रसन्न हुआ। बड़ी रानी से उसके यहाँ पुत्र हुआ। अब राजा का सारा ध्यान, हर वृत्ति, बेटे की ओर आ गई क्योंकि वह मंत्रमुग्ध था। जैसे ही वह दरबार से मुक्त होता, वह सीधे उस महल की ओर चला जाता जहाँ बेटा रहता था। अब वह दूसरी रानियों की ओर देखता भी नहीं था।
ईर्ष्या का बीज और बेटे की मृत्यु
अन्य सभी रानियों ने सोचा कि यह हमारे लिए कितना दुर्भाग्य है। पहले तो हमारी कोई संतान नहीं हुई और जब से बड़ी रानी का बेटा आया है, तब से राजा हमारी ओर देखते भी नहीं हैं। वह बच्चा ही हम सभी का दुश्मन है। उन्होंने उसके दूध में ज़हर देने का निर्देश उसकी सेविकाओं को दे दिया। दूध पीते ही बच्चा सो गया और उसका पूरा शरीर नीला पड़ गया। किसी दूसरी सेविका ने देखा तो चिल्ला कर दूसरों को बताया। बड़ी रानी दौड़ते हुए आई। उसने देखा कि जहर के प्रभाव से बच्चे का पूरा शरीर काला पड़ गया था। उसने वैद्य से उसकी जाँच करवाई, लेकिन वह बेजान था। राजा क्रोधित हो गया और चीखने-चिल्लाने लगा। उसने मृत बेटे के पैरों को अपनी छाती से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगा।
देवर्षि नारद जी और अंगिरा जी ने देखा कि राजा अत्यंत बेचैन है। उन्होंने कहा, हे राजन, हमने तुमसे कहा था कि पुत्र-सुख तुम्हारे भाग्य में नहीं है। उसने कहा, कृपया मुझे उपदेश न दें, मुझे मेरा पुत्र चाहिए। उन्होंने कहा कि हम उसे कुछ समय के लिए बुला सकते हैं। अपनी असाधारण क्षमताओं से उन्होंने यमराज को आदेश दिया कि उस आत्मा को यम के चंगुल से कुछ समय के लिए बचा लें।
मृत पुत्र आया वापस
नारद जी सब जानते हैं, वे सर्वज्ञ हैं। उन्होंने उस जीव से कहा, देखो, तुम्हारे पिता तुमसे बहुत प्रेम करते हैं, तुम इस शरीर में वापस आ जाओ। उस जीवात्मा ने कहा, आप ऐसा मजाक क्यों कर रहे हैं? वे मेरे पिता कैसे हैं? वे इतनी बार मेरी पत्नी बने, इतनी बार मेरे पुत्र बने, इतने जन्मों से यह व्यापार चल रहा है, क्या यह मेरा पिता है? यह तो केवल अपने अहंकार और मोह का रोना रो रहा है। उस जीवात्मा के बोलते ही राजा ने कहा, हे प्रभु! मुझे पुत्र की इच्छा नहीं है। इसके बाद राजा को नारद जी द्वारा मंत्र दिया गया और उसने ऐसी महान तपस्या की कि उसे भगवान के दर्शन हो गए।
हमें भगवान के प्रति प्रेम विकसित करना चाहिए और सत्संग सुनना चाहिए। कोई किसी का पुत्र नहीं है, कोई किसी की पत्नी नहीं है, कोई किसी का पिता नहीं है, कोई किसी का पति नहीं है। हम कुछ समय के लिए माया के इस नाटक में फँसे हुए हैं। हम स्त्री और पुरुष के वेश में आए हैं। अपना काम पूरा करें और वापस चलें।
महाराज भरत की हिरण से आसक्ति होने की कहानी
भरत जी अपना राज्य और रानियों को छोड़कर भगवान को पाने की यात्रा पर निकल पड़े। लेकिन बाद में उन्हें एक हिरण से आसक्ति हो गई। उन्हें अपनी मृत्यु के समय हिरण की याद आई, इसलिए वे अपने अगले जन्म में हिरण के रूप में पैदा हुए। अब सोचो हमारा क्या होगा! सब कुछ त्याग देने पर भी वे मोह में फँसे रहे। हम अभी भी पूरी तरह से मोह के जाल में फँसे हुए हैं। इसलिए कोई भी आपका पुत्र नहीं है। आप गृहस्थ जीवन में भगवान को तब प्राप्त करते हैं जब आप अपने बेटे, पति और पत्नी में भगवान को देखते हैं। जब आप किसी में ईश्वर को देखते हैं, तो कोई द्वेष या अन्य कोई गंदी भावना नहीं होती; हम केवल उन्हें प्रसन्न करना चाहते हैं।
नरसी मेहता जी के बेटे की जब मृत्यु हुई तो वे नाचने लगे। लोगों ने कहा कि आपको तो रोना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो हरि का नहीं है, वह रोता है, हम हरि के हैं। मेरा बेटा कुछ दिन के लिए आया और लीला करके वापस चला गया। यह भगवान की संपत्ति है, वह खुद ही इसकी देखभाल कर सकते हैं। मुझे और भी स्वतंत्रता मिल गई; अब मैं दिन-रात उनकी पूजा कर सकता हूँ। मुझे बिल्कुल भी चिंता नहीं है।
हर समय वैराग्य से कैसे चलें?
हर समय राधा-राधा जपें। जब आपके पास भगवान का नाम होगा, तो विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह) आपको हरा नहीं पाएँगे। हम नाम जप और भगवान की पूजा भूल गए हैं। जैसे हर निवाला खाने से भूख मिट जाती है, वैसे ही हर पल भगवान का नाम जपने से हम संसार से अनासक्त हो जाते हैं, अपना असली रूप जान जाते हैं और हमें भगवान से प्रेम हो जाता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति कई दिनों से भूखा हो और एक निवाला खाने के बाद रुक जाए, तो उसे और भी भूख लगेगी। कम से कम आधा पेट तो भरना ही चाहिए। इस प्रकार यदि हम प्रतिदिन कुछ घंटे ही भगवान का स्मरण और भजन करने लगें तो हमें परम आनंद की अनुभूति होने लगेगी। सत्य मार्ग पर चलें; जो भी सुख-दुख आए, उसे सहन करें। राधा-राधा जपें और यहाँ से निकल जाएँ। यह जग एक कसाईखाना है। यहाँ से भागकर निकल जायें। काल हमें नष्ट कर देगा। हम अक्सर सुनते हैं, किसी का एक्सीडेंट हो गया और उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए। कोई कहता है चलती कार में आग लग गई, कोई निकल नहीं सका, सब जलकर राख हो गए। यह सब क्या है? सब पर काल का नियंत्रण है, यह काल का कसाईखाना है, कोई न कोई कुल्हाड़ी बनकर आएगा और आपको नष्ट कर देगा। जीवन की एक सीमा है इसलिए राधा-राधा जपें और यहाँ से भागें। इस संसार से मुक्त होने का प्रयास करें। भगवान का नाम जपें, उनकी पूजा करें और सत्संग सुनें तो आपकी बुद्धि शुद्ध हो जाएगी। केवल यही उपाय आपको दुख से बचा सकता है।
यह जगत अस्थायी है!
भगवान के नाम जप, लीला स्मरण और उनकी शरण के अलावा तीनों लोकों में सभी पीड़ाओं को दूर करने का कोई दूसरा उपाय नहीं है।
तब लगि कुसल न जीव कहुँ, सपनेहुँ मन बिश्राम।
दोहावली, तुलसीदास जी
जब लगि भजत न राम कहुँ, सोक धाम तजि काम॥
इस स्थान को मृत्यु लोक कहते हैं, यहाँ सभी को मरना है। जब भगवान स्वयं यहाँ प्रकट हुए थे, तब उन्होंने भी अंतर्ध्यान होने की लीला की। आप इस दुख भरी जगह में खुशी की तलाश कर रहे हैं। भागो, इस भौतिक चक्र से मुक्त हो जाओ। भागने का मतलब है भगवान को प्राप्त करना, और भगवान उनके नाम के जप से प्राप्त होते हैं।
जौं सभीत आवा सरनाई।
रामचरितमानस
रखिहउँ ताहि प्रान की नाई
भगवान कहते हैं, मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी भय से मुक्त कर दूंगा।
मृत्यु के समय भक्त की स्थिति
भगवान स्वयं अपने भक्तों को लेने आते हैं। भक्तों का मन हमेशा भगवान के आनंद में लीन रहता है, वे पहले ही अपना शरीर छोड़ चुके होते हैं, मृत्यु उनके लिए केवल एक लीला होती है। भक्तों को शरीर छोड़ने में कष्ट नहीं होता। भगवान कहते हैं, मैं मृत्यु हूँ, इसलिए भगवान मृत्यु के रूप में सभी को ले जा रहे हैं। लेकिन भक्तों के लिए वे डरावने रूप में नहीं आते। वे प्रेमी रूप में आते हैं। इसलिए भगवान के नाम का जप करें और उनकी शरण लें।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज