8. अष्टयाम सेवा – शयन
8.1 शयन भोग
अब शयन भोग का समय हो गया है, आप श्यामा-श्याम को आचमन करवाएँ और उन्हें भोग अर्पित करें। भोग पाने के बाद फिर श्यामा-श्याम को आचमन करवायें और उनके हाथ और मुँह पोछें। यह पद गाएँ:
लाड़िली-लाल राजत रुचिर कुंज में।
अरगजा अंग रँग-रंग बागे बने,दोउ जन प्रेम सौं सने रस-पुंज में॥
निर्तत ठाढ़ी अलीं भलीं गति भेद सौं, रैंन पहिलौ जाम एक अलि गुंज में।
पर्यौ परदा धर्यौ सैंन कौ भोग,पूरी भरि थार ब्रजलाल कर मंजु में॥सैंन भोग ल्याईं भरि थारी।
रुचिर कचौरी पूआ पूरी, मोहनभोग जैंवत पिय-प्यारी ॥
धरे कटोरा भरे मुरब्बा, सरस सधाने वर तरकारी।
औट्यौ दूध रजत भाजन भरि, ता मधि पीस सिता बहु डारी॥
भोजन सैंन समय करवावत।
लुचई मोहनभोग इमरती, मिश्री फैंनी दूध मिलावत।
दृग कोरनि मधि हँसत परस्पर, रद छद परसत ललन खवावत।।
राधा मोहनलाल ब्यारू कीजै।
पूरी दूध मलाई मिश्री, पहिलौ कौर प्रियाजू कौं दीजै।
जैंवत लाल-लड़ैती दोऊ, ललितादिक निरखत सुख भींजै ॥करत राधा-मोहन ब्यारू बैठे सदन मिलि सोहैं।
इक थारी एकै जलझारी, एक वैस इक रूप उजारी।
मधु मेवा पकवान मिठाई, दंपति अति रुचिकारी ॥
प्यारी कें कर पावत प्यारौ, प्यारे कें कर पावत प्यारी।
दूध सिराय लै आईं श्रीललिता, प्यारीजू पियौ लाल करै मनुहारी।।
8.2 दुग्धपान पद
अब भोग के बाद, प्रिया-प्रियतम को दूध का भोग लगाएँ। इन पदों का गान करें।
हँसि-हँसि दूध पीवत बाल।
मधुर वर सौंधे सुवासित, रुचिर परम रसाल ॥
भुव भंग रंग अनंग वितरत, चितै मोहन ओर।
सुधानिधि मनौं प्रेम धारा, पुषित त्रिषित चकोर ॥
प्यारौलाल रस लंपट सुकर, अँचवाय मुख छबि हेर।
लेत तब अबशेष आपुन, परे मनमथ फेर।।
रीझि – रीझि सराहि स्वादहिं, दियौ निजसखि पान।
पाइ अद्भुत हरषि ‘सुख सखि’, निरखि वारत प्रान ॥हँसि-हँसि दूध पिवत पिय प्यारी।
चन्दन वारि कनक चिरु औट्यौ, वारों कोटि सुधारी ॥
मिश्री लोंग चिरौंजी एला, कपूर सुगन्ध सँवारी।
उज्ज्वल सरस सचिक्कन सुन्दर, स्वाद सुमिष्ट महारी ॥
ललिता कर पट लीयै ठाढी, चित्रा लै जल-झारी।
सब सखियनि कौं दई प्रसादी, ‘लाल सखी’ बलिहारी ॥
आचमन
दुलहिनी दूलह रसिक रस भरे पौंढ़न हेत ।
वृन्दावन हित रूप सहचरी अँचवन बीरी देत ॥
8.3 शयन आरती
दूध पान करवाने के बाद प्रिया-प्रियतम को आचमन करवाएँ और उनकी शयन आरती करें।
रस निधि सैन आरती कीजै, निरखि-निरखि छबि जीवन जीजै ।
मणि-नग जगमग जोति जगमगै, दम्पति रूप प्रकाश रँगमगै॥
सहचरि चँवर मोरछल ढोरैं, पुहुप वृष्टि अंजुलि चहुँ ओरैं।
झाँझ ताल झालरि, दुन्दुभि-रव, निर्त गान अलि हरति मनोभव॥
महा मोद धुनि मधुर मृदंगा, जै-जै वानी मिलि इक संगा।
यह सुख रसिक उपासिक गावैं, जै श्रीरूपलाल हित चित दुलरावैं॥
जै जै श्रीराधेजू मैं शरण तिहारी, प्यारी शरण तिहारी।
लोचन आरती जाऊँ बलिहारी।। जै जै हो राधे जू॥
पाट पटम्बर ओढ़े नील सारी,सीस के सैंदुर जाऊँ बलिहारी । जै जै हो राधे जू॥
रतन (फूल) सिंहासन बैठौ श्रीराधे,आरति करें हम पिय संग जोरी। जै जै हो राधे जू॥
झलमल झलमल मानिक मोती, अवलख मुनि मोहे पिय संग जोरी | जै जै हो राधे जू॥
श्रीराधे पद पंकज भगति की आशा। दास मनोहर करत भरोसा ।। जै जै हो राधे जू॥ ।।
8.4 शयन
अब श्यामा-श्याम के सोने का समय है। आप भावना करें कि आपने एक कोमल शय्या तैयार की है और प्रिया-प्रियतम को आप सोने के लिए प्रार्थना करें और यह पद गाएँ।
लड़ैतीजू के नैननि नींद घुरी ।
आलस बस जोवन बस मद बस, पिय के अंस ढुरी ॥
पिय कर परस्यौ सहज चिवुक वर, बाँकी भौंह मुरी ।
बावरी सखी हित व्याससुवन बल, देखत लतनि दुरि ॥चाँपत चरण मोहनलाल ।
परजंक पौढ़ी कुँवरि राधा नागरी नव-बाल ॥
लेत कर धरि परसि नैंननि, हरषि लावत भाल ।
लाइ राखत हृदै सौं तब गनत भाग विसाल ॥
देखि पियकी अधीनता भई कृपासिंधु दयाल ।
व्यासस्वामिनी लिये भुज भरि, अति प्रवीन कृपाल ॥
आजु वन क्रीडत श्यामा श्याम ।
सुभग बनी निशि शरद चाँदनी, रुचिर कुंज अभिराम ॥
खंडन अधर करत परिरम्भन, ऐंचत जघन दुकूल ।
उर नख – पात तिरीछी चितवन, दंपति रस समतूल ॥
वे भुज पीन पयोधर परसत, वाम दृशा पिय हार ।
बसनन पीक अलक आकर्षत, समर श्रमित सत मार ॥
पल – पल प्रबल चौंप रस लंपट, अति सुंदर सुकुमार ।
(जैश्री) हित हरिवंश आजु तृन टूटत, हौं बलि विशद विहार ॥
8.5 निशीत भोग
श्यामा-श्याम को सुलाते समय कुछ भोग और जल उनके पास रख दें जो वे देर रात पा सकें।
इसके साथ अष्टयाम सेवा संपूर्ण होती है। जो उपासक इस तरह प्रकट या मानसिक अष्टयाम सेवा करता है, वह निश्चित ही प्रिया-लाल की अंग सेवा का अधिकार प्राप्त करता है।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज
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