अष्टयाम सेवा पद्धति – विधि एवं नियम (ऑडियो सहित)

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
अष्टयाम सेवा पद्धति

7. अष्टयाम सेवा – संध्या पश्चात् रास के पद

अब संध्या के बाद श्यामा-श्याम यमुना के तट पर विहार करने गए हैं और वहाँ एक सुंदर रास मंडल में दोनों विराजमान हैं। प्रिया-प्रियतम रास खेल रहे हैं। इन पदों का गान करें।

आजु गोपाल रास रस खेलत, पुलिन कल्पतरु तीर री सजनी।
शरद विमल नभ चंद विराजत, रोचक त्रिविधि समीर री सजनी ॥
चंपक बकुल मालती मुकुलित, मत्त मुदित पिक-कीर री सजनी।
देसी सुधंग राग-रंग नीकौ, ब्रज-जुवतिनि की भीर री सजनी ॥
मघवा मुदित निसान बजायौ, व्रत छाँड्यौ मुनि धीर री सजनी।
जै श्रीहित हरिवंश मगन मन श्यामा, हरत मदन घन पीर री सजनी ॥

श्याम सँग राधिका रास मंडल बनी।
बीच नँदलाल ब्रजवाल चंपक वरन,
ज्यौंव घन तड़ित बिच कनक मरकत मनी।।
लेत गति मान तत्त थेई हस्तक भेद,
स रे ग म प ध नि ये सप्त सुर नादिनी।
निर्त रस पहिर पट नील प्रगटित छबी,
वदन जनु जलद में मकर की चाँदिनी।।
राग रागिनि तान मान संगीत मत,
थकित राकेश नभ सरद की जामिनी।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रभु हंस कटि केहरी,
दूरि कृत मदन मद मत्त गज गामिनी।।

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