अष्टयाम सेवा पद्धति – विधि एवं नियम (ऑडियो सहित)

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
अष्टयाम सेवा पद्धति

6. अष्टयाम सेवा – संध्या

6.1 संध्या भोग

अष्टयाम सेवा शयन भोग

अब संध्या का समय है और श्यामा-श्याम को भोग लगाने का समय आ गया है। आपने जो भी भोग बनाया हो उसे अपने ठाकुर जी को नीचे दिया हुआ पद गाते हुए उन्हें अर्पित करें। जब श्यामा-श्याम भोग पा लें तो उनके हाथ और मुँह धुलवाएँ और पोछें। अगर आप ऊपर से यहाँ तक पद पढ़ते/गाते आए हैं तो आपको समझ आया होगा कि सखियाँ हर भोग के बाद श्यामा-श्याम को पान का बीड़ा भी भोग लगाती हैं। अगर आपके लिए यह संभव हो तो आप भी ऐसा करें।

आय विराजे महल में, संध्या समयौ जान।
आली ल्याईं भोग सब, मेवा अरु पकवान ॥

संध्या भोग अली लै आईं।
पेड़ा-खुरमा और जलेबी, लडुआ-खजला और इमरती,मोदक मगद मलाई।
कंचन-थार धरे भरि आगें, पिस्ता अरु बादाम रलाई।
खात-खवावत लेत परस्पर, हँसनि दसन-चमकनि अधिकाई॥

अद्भुत मीठे मधुर फल, ल्याईं सखी बनाय ।
खवावत प्यारेलाल कौं, पहिलैं प्रियाहिं पवाय॥

पानि परसि मुख देत बीरी पिय, तब प्यारी नैंनन में मुसिकाई।
ललितादिक जैश्रीकमलनयन हित, धनि दिन मानत आपनौं माई॥

संध्या भोग लगाने के बाद अब श्यामा-श्याम की संध्या आरती करें:

6.2 संध्या आरती

पाग बनी पटुका बन्यौ, बन्यौ लाल कौ वेष।
श्रीराधावल्लभलाल की, दौरि आरती देख ॥

आरति कीजै श्यामसुन्दर की। नन्द के नंदन राधिकावर की॥
भक्ति करि दीप प्रेम करि बाती । साधु संगति करि अनुदिन राती ॥
आरति ब्रजयुवति जूथ मन भावै | श्यामलीला श्रीहरिवंश हित गावै ॥
आरति राधाबल्लभलाल की कीजै। निरखि नयन छबि लाहौ लीजै ॥
सखि चहुँओर चँवर कर लीयैं। अनुरागन सौं भीने हीयैं।
सनमुख बीन मृदंग बजावैं। सहचरि नाना राग सुनावैं॥
आरति राधाबल्लभलाल की कीजै। निरखि नयन छबि लाहौ लीजै ॥
कंचन-थार जटित मणि सोहै। मध्य वर्तिका त्रिभुवन मोहै॥
घंटा-नाद कह्यौ नहिं जाई। आनंद मंगल की निधि माई॥
जयति जयति यह जोरी सुखरासी। जयश्रीरूपलाल हित चरन निवासी ॥
आरति राधाबल्लभलालजू की कीजै। निरखि नयन छबि लाहौ लीजै॥

6.3 इष्ट स्तुति

अष्टयाम सेवा इष्ट स्तुति

संध्या आरती के बाद इस इष्ट स्तुति का गान करें:

चन्द्र मिटै दिनकर मिटै, मिटै त्रिगुन विस्तार।
दृढ़ व्रत श्रीहरिवंश कौ, मिटै न नित्य विहार।।
जोरी जुगलकिशोर की, और रची विधि वादि।
दृढ़ व्रत श्रीहरिवंश कौ, निवह्यौ आदि जुगादि॥
निगम-ब्रह्म परसत नहीं, जो रस सबतें दूरि।
कियौ प्रगट हरिवंशजू, रसिकनि जीवनि मूरि॥
रूप-बेलि प्यारी बनी, सु प्रीतम प्रेम-तमाल।
दोउ मन मिलि एकै भये, श्रीराधावल्लभलाल ॥
निकसि कुंज ठाढ़े भये, भुजा परस्पर अंश।
श्रीराधावल्लभ-मुख-कमल, निरखि नयन हरिवंश॥
रे मन! श्रीहरिवंश भजि, जो चाहत विश्राम।
जिहिं रस-बस ब्रज ब्रजसुन्दरिनु, छाँड़ि दिये सुख धाम ॥
निगम नीर मिलि इक भयौ, भजन दुग्ध सम स्वेत।
श्रीहरिवंश-हंस न्यारौ कियौ, प्रगट जगत के हेत।।
श्रीराधावल्लभ लाड़िली, अति उदार सुकुमारि ।
ध्रुव तौ भूल्यौ ओर तें, तुम जिन देहु बिसारि ॥
तुम जिन देहु बिसारि, ठौर मोकौं कहुँ नाहीं।
प्रिय रंग भरी कटाक्ष, नैंक चितवहु मो माँहीं॥
बढ़े प्रीति की रीति, बीच कछु होय न बाधा।
तुम हौ परम प्रवीन, प्राणवल्लभ श्रीराधा॥
बिसरिहौं न बिसारिहौ, यही दान मोहिं देहु।
श्रीहरिवंश के लाड़िले, मोहिं अपनी करि लेहु॥
कैसैंहु पापी क्यों न होइ, श्रीहरिवंश नाम जो लेइ ।
अलक लड़ैती रीझिकें, महल खवासी देइ।
महिमा तेरी कहा कहूँ, श्रीहरिवंश दयाल।
तेरे द्वारें बँटत हैं, सहज लाड़िली-लाल॥
सब अधमनि कौ भूप हौं, नाहिंन कछु समुझन्त।
अधम-उधारन व्यास-सुत, यह सुनिकें हर्षन्त ॥
बन्दौं श्रीहरिवंश के, चरन-कमल सुख-धाम।
जिनकों वन्दत नित्य ही, छैल छबीलौ श्याम ॥
श्रीहरिवंश स्वरूप कौं, मन-वच करौं प्रणाम।
सदा – सदा तन पाइये, श्रीवृन्दावन धाम ॥
जोरी श्रीहरिवंश की, श्रीहरिवंश स्वरूप।
सेवकवाणी-कुंज में, बिहरत परम अनूप॥
करुणानिधि अरु कृपानिधि, श्रीहरिवंश उदार।
वृन्दावन रस कहन कौं, प्रगट धर्यौ अवतार ॥
हित की यहाँ उपासना, हित के हैं हम दास।
हित विशेष राखत रहौं, चित नित हित की आस ।।
हरिवंशी हरि-अधर चढ़ि, गुंजत सदा अमन्द।
दृग-चकोर प्यासे सदा, प्याय सुधा मकरन्द ॥
जै जै श्रीहरिवंशहि गाय मन, भावै जस हरिवंश।
हरिवंश बिना न निकासिहौं, पद निवास हरिवंश ॥
दीजौ श्रीवृन्दावन वास, निरखूँ श्रीराधावल्लभलाल कौं।
लड़ैति-लाल कौं।।
यह जोरी मेरे जीवनप्राण, निरखूँ श्रीराधावल्लभलाल कौं। लड़ैती-लाल कौं।।
मोर मुकुट पीताम्बर, एजी पीताम्बर, उर बैजन्ती माल।
हाँजी सोहै गल फूलनि की माल ॥ निरखूँ… । लड़ैती…. ॥
जमुना पुलिन वंशीवट, एजी वंशीवट, सेवाकुंज निज धाम॥
हाँजी मंडल सेवा सुख धाम, हाँजी मानसरोवर बादग्राम ॥ निरखूँ… । लड़ैती…. ॥
वंशी बजावै प्यारौ मोहना, बजावै प्यारौ मोहना, लै-लै राधा-राधा नाम, हाँजी लै लै श्यामा-श्यामा नाम, हाँजी लै लै प्यारी-प्यारी नाम ॥ निरखूँ… । लड़ैती…. ॥
देखौ या ब्रज की रचना, श्रीवृन्दावन की रचना, नाचें जुगलकिशोर, हाँजी नाचैं नवल किशोर ।। निरखूँ… ।। लड़ैती… ॥
चन्द्रसखी कौ प्यारौ, श्रीराधाजू कौ प्यारौ, सखियन कौ प्यारौ। बिरज रखवारौ, श्रीहरिवंश दुलारौ ।। दरशन दीजौ दीनानाथ, हाँजी दर्शन दीजौ हित लाल ॥ निरखूँ… । लड़ैती…. ॥
यह जोरी मेरे जीवन प्रान, दीजौ श्रीवृन्दावन वास, निरखूँ श्रीराधावल्लभलाल कौं । लड़ैति-लाल कौं।।

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