अष्टयाम सेवा पद्धति – विधि एवं नियम (ऑडियो सहित)

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
अष्टयाम सेवा पद्धति

5. अष्टयाम सेवा – उत्थापन समय

अब प्रिया-प्रियतम को सोए हुए बहुत समय हो गया है, अब उन्हें उठाया जाए और भोग लगाया जाए। आप आरती और भोग की तैयारी कर लें। अब नीचे दिया गया हुआ पद गाएँ और प्रिया-लाल को जगाएँ। अब आपके प्रिया-प्रियतम के नैन खुल गए हैं, उनके मुख और हाथ धुलवायें और पोछें। इसके बाद उनका श्रृंगार करें और उन्हें भोग लगायें। भोग लगाने के बाद उनके हाथ और मुँह धुलवायें और पोछें।

जाहि री तू मन्दिर माँहिं दरे री।
जुगल जगाइ रह्यौ दिन थोरौ, मानि वीनती मेरी ॥
दंपति-अंग-सिंगारनि सामा, मैं रचि धरी घनेरी।
गौर-श्याम कौ मुख देखें बिनु, सबै अरवरत एरी ॥
यह सुनि सखी अलंकृत ह्वैकैं, सैंन भवन गई नेरी।
बीन अंक लै गावत बलि-बलि, उठहु नींद दै डेरी ॥
वन-कौतिक-लोभी सुनि जागे, बातनि रंग ढरे री।
वृन्दावन हित रूप आइ जल, मज्जन वदन करे री ॥

दुहुँनि तन सखिनु सिंगार किये हैं।
अंजन दै पुनि तिलक भाल रचि, दर्पन करनि दिये हैं।
धूप दीप करि चरचि सुगंधिनु, घृत पक भोग धरे हैं।
मेवा मधुर मिष्ट फल नाना, जैंवत स्वाद ढरे हैं।
सबके नाम बतावति सजनी, जैंवत कxरति बड़ाई।
धनि-धनि चंपकलता हेत उर, अधिक भरी चतुराई॥
तुष्ट-पुष्ट भये ग्रासनि लै पुनि, जमुनोदक अचवावै।
वृन्दावन हित रूप अनुरागिनि, रचि-रचि पान खवावै॥

इसके बाद उनका श्रृंगार करें और उनकी शोभा को निहारते हुए यह पद गाएँ:

5.1 उत्थापन शृंगार शोभा

रुचिर राजत वधू कानन किशोरी ।
सरस षोडस किए तिलक मृगमद दिये, मृगज लोचन उबटि अंग शिर खोरी ॥
गंड पंडीर मंडित, चिकुर चंद्रिका, मेदिनी कवरि गूँथित सुरंग डोरी ।
श्रवन ताटंक कै चिबुक पर बिंदु दै, कसूँभि कंचुकि दुरे उरज फल कोरी ॥
वलय कंकन दोत, नखन जावक जोत, उदर गुन रेख, पट नील, कटि थोरी ।
सुभग जघनस्थली, कुनित किंकिनि भली, कोक संगीत रस-सिंधु झकझोरी ॥
विविध लीला रचित रहसि श्रीहरिवंश हित, रसिक सिर मौर राधारवन जोरी ।
भृकुटि निर्जित मदन मंद सस्मित वदन, किये रस विवश घनश्याम पिय गोरी॥

देखौ माई सुन्दरता की सींवाँ ।
ब्रज नवतरुनि कदंब नागरी, निरखि करत अधग्रीवाँ ॥
जो कोऊ कोटि कलप लगि जीवै, रसना कोटिक पावै ।
तऊ रुचिर वदनारविंद की, शोभा कहत न आवै ॥
देवलोक, भू-लोक, रसातल, सुनि कवि-कुल मति डरिये ।
सहज माधुरी अंग-अंग की, कहि कासौं पटतरिये ॥
(जैश्री) हित हरिवंश प्रताप, रूप, गुण, वय, बल श्याम उजागर ।
जाकी भ्रू-विलास बस पशुरिव, दिन विथकित रस सागर ॥

5.2 उत्थापन धूप आरती

अब आप अपने प्रिया-प्रियतम की धूप आरती करें और नीचे दिया हुआ पद गाएँ:

श्रीराधा मेरे प्रानन हूँ ते प्यारी ।
भूलिहूँ मान न कीजै सुन्दरि हौं तौ शरण तिहारी ॥
नेकु चितै हँसि हेरिये मोतन खोलिये घूंघट सारी ।
जैश्री कृष्णदास हित प्रीति रीति बस भर लई अंकन वारी ॥

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