2. अष्टयाम सेवा – प्रातः कालीन वन विहार
![अष्टयाम सेवा वन विहार](https://bhajanmarg.com/wp-content/uploads/2024/11/ashtayam-seva-van-vihar-1024x576.webp)
अब भावना करें कि आपके युगल सरकार (प्रिया-प्रियतम) गलबहियाँ दिए वृंदावन की गलियों में घूम रहे हैं और वृंदावन की शोभा को देख रहे हैं। अगर आपके पास व्यवस्था हो तो आप अपने ठाकुर जी को सुविधानुसार वन विहार (जैसे कि अपने घर के गार्डन में) करवा सकते हैं नहीं तो भाव में उन्हें वन विहार करवायें। इस पद का गान करें:
वन की कुंजन कुंजन डोलन ।
निकसत निपट साँकरी बीथिन, परसत नाहिं निचोलन ॥
प्रात काल रजनी सब जागे, सूचत सुख दृग लोलन ।
आलसवन्त अरुण अति व्याकुल, कछु उपजत गति गोलन ॥
निर्तन भृकुटि बदन अम्बुज मृदु, सरस हास मधु बोलन ।
अति आसक्त लाल अलि लम्पट, बस कीने बिनु मोलन ॥
बिलुलित सिथिल श्याम छूटी लट, राजत रुचिर कपोलन ।
रति विपरित चुंबन परिरंभन, चिबुक चारु टक टोलन ॥
कबहुँ स्रमित किसलय सिज्या पर, मुख अंचल झक झोलन ।
दिन हरिवंश दासि हिय सींचत, वारिधि केलि कलोलन ॥
आजु सँभारत नाँहिन गोरी ।
फूली फिरत मत्त करिनी ज्यौं सुरत समुद्र झकोरी ।।
आलस वलित अरुन धूसर मषि प्रगट करत दृग चोरी ।
पिय पर करुन अमी रस बरषत अधर अरुनता थोरी ।।
बाँधत भृंग उरज अंबुज पर अलक निबंध किसोरी ।
संगम किरचि किरचि कंचुकि बँध सिथिल भई कटि डोरी ।।
देति असीस निरखि जुवती जन जिनकें प्रीति न थोरी ।
(जै श्री) हित हरिवंश विपिन भूतल पर संतत अविचल जोरी ।।
आवत लाल प्रिया भुज जोरैं ।
डगमगात आरस रस भीने, अति सुरंग नैंननि की कोरैं ।
चितवनि सहज चारु अति चंचल, मुसिकन मन्द मिथुन चित चोरैं ॥
हित ध्रुव निरखि रसिक ललितादिक, डारति वारि प्रान तृन तोरैं ।
2.1 झूलन (झूले पर श्यामा श्याम)
![अष्टयाम सेवा झूलन दर्शन](https://bhajanmarg.com/wp-content/uploads/2024/11/ashtayam-seva-jhulan-darshan-1024x576.webp)
अब भावना करें कि आपने प्रिया-प्रियतम के लिए एक झूला तैयार किया है और वो झूले पर बैठकर वृंदावन की शोभा का आनंद ले रहे हैं। उस झूले पर वृंदावन की लताएँ भी विराजमान हैं और आप अपने ठाकुर जी की झूला झुला रहे हैं। उन्हें यह इतना पसंद आया कि वे मधुर तानों में गान करने लगे। अगर आपके पास व्यवस्था हो तो आप अपने ठाकुर जी का झूलन करवा सकते हैं नहीं तो भाव करते हुए उन्हें झूला झुलाएँ। यह पद गाएँ:
झूलत दोऊ नवल किसोर ।
रजनी जनित रंग सुख सूचत, अंग अंग उठि भोर ॥
अति अनुराग भरे मिलि गावत, सुर मंदर कल घोर ।
बीच बीच प्रीतम चित चोरत, प्रिया नैंन की कोर ॥
अबला अति सुकुमार डरत मन, वर हिंडोर झकोर ।
पुलकि पुलकि प्रीतम उर लागत, दै नव उरज अँकोर ॥
अरुझी विमल माल कंकन सौं, कुंडल सौं कच डोर ।
वेपथ जुत क्यौं बनैं विवेचित, आनँद बढ्यौ न थोर ॥
निरखि निरखि फूलत ललितादिक विवि मुख चन्द्र चकोर ।
दे असीस हरिवंश प्रसंसत करि अंचल की छोर ॥
2.2 जल विहार
![अष्टयाम सेवा नौका विहार](https://bhajanmarg.com/wp-content/uploads/2024/11/ashtayam-seva-nauka-vihar-1024x576.webp)
अब ऐसी भावना करें कि झूलन के बाद प्रिया-प्रियतम यमुना के तट पर आए हैं। अब दोनों राधा-मोहन जू एक नौका में बैठकर यमुना जी की शोभा का आनंद ले रहे हैं। अगर आपके पास व्यवस्था हो तो आप अपने ठाकुर जी का जल विहार और नौका विहार करवा सकते हैं नहीं तो भाव करते हुए उनकी जल केलि करवायें। यह पद गाएँ:
देखौ सखी री देखौ दोऊ बैठे नाव में ।
गावत आवत चपल चलावत, सहचरि चंपा चाव में ॥
श्यामाश्याम दिये गरबहियाँ, नौका बिच रस भाव में ।
नागर नवल सखिन की अँखियाँ, लगि लपटीं लपटाव में ॥
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