अष्टयाम सेवा पद्धति – विधि एवं नियम (ऑडियो सहित)

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
अष्टयाम सेवा पद्धति

अष्टयाम सेवा हित उपासना का अभिन्न अंग है। अष्टयाम का तात्पर्य दिनभर में सहचरियों द्वारा किए जाने वाली विभिन्न सेवाओं से है। सहचरियाँ “तत्सुख भाव” (राधा-कृष्ण के सुख में ही अपना सुख देखना) के सिद्धांत के अनुसार जीवन जीती हैं, और उनका हर कार्य जुगल जोड़ी (राधा-कृष्ण) को सुख, प्रेम और आराम प्रदान करने की भावना से प्रेरित होता है। दिन को 8 भागों (8 प्रहर) में विभाजित किया गया है, जिसमें प्रत्येक प्रहर 3 घंटे का होता है, और इस प्रकार पूरे 24 घंटे की सेवा पूर्ण होती है। अष्टयाम सेवा के दौरान 7 भोग (विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का अर्पण) और 5 आरतियाँ होती हैं।

अष्टयाम सेवा की समय-सारणी

मंगला (सूर्योदय/प्रातःकाल – लगभग सुबह 5 बजे) – प्रातः श्री प्रिया-प्रियतम को जगाना, उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन अर्पित करना और उनकी आरती करना।
वन विहार (वृंदावन के वन में भ्रमण – लगभग सुबह 6.30 बजे) – श्री प्रिया-प्रियतम वृंदावन के वनों में भ्रमण करते हैं, लताओं की सुंदरता का आनंद लेते हैं और पक्षियों की मधुर चहचहाहट सुनते हैं। कभी-कभी लाड़ली-लाल कोमल स्वर में गाते हैं, जो सहचरियों को अपार आनंद प्रदान करता है।
शृंगार (स्नान और अलंकरण – लगभग सुबह 8 बजे) – सहचरियाँ लाड़ली-लाल का अत्यंत प्रेमपूर्वक सुगंधित जल से स्नान कराती हैं। फिर उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाकर, ताजा फूलों की माला और आभूषणों से सुसज्जित करती हैं और उनकी आरती करती हैं।
राजभोग (मध्याह्न भोजन – लगभग सुबह 11 बजे) – श्री प्रिया-प्रियतम को बैठाकर सहचरियाँ उनके लिए विशेष प्रेम और परिश्रम से बनाए गए विभिन्न प्रकार के व्यंजन अर्पित करती हैं। यह भोग ऋतु के अनुसार होता है। प्रिया-प्रियतम को सहचरियों द्वारा प्रेम से भोजन कराया जाता है, जिसके बाद वे विश्राम करते हैं।
उत्थापन (दोपहर के बाद – लगभग 3-4 के बीच) – सहचरियाँ श्री लाड़ली-लाल को जगाती हैं और उन्हें हल्का नाश्ता अर्पित करती हैं। इसके बाद सहचरियाँ उनकी धूप आरती करती हैं।
संध्या भोग और आरती (लगभग शाम 6 बजे ) – सहचरियाँ श्री प्रिया-प्रियतम को भोग लगाती हैं और उनकी आरती करती हैं।
संध्या लीला (संध्याकालीन क्रीड़ाएँ) – श्री लाड़ली-लाल यमुना जी के तट पर जाते हैं और सहचरियों की इच्छा के अनुसार नाव विहार या रास जैसी क्रीड़ाओं में सम्मिलित होते हैं।
शयन लीला (रात्रि विश्राम – लगभग रात 8-9 बजे) – सहचरियाँ प्रिया-लाल के लिए कोमल पुष्पों से सुंदर बिस्तर तैयार करती हैं। कुछ सहचरियाँ उनके चरण दबाती हैं, जबकि अन्य मधुर स्वर में गाकर प्रिया-लाल को सुलाती हैं।

अष्टयाम सेवा साधकों और गृहस्थों, दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मन और शरीर को निरंतर श्री लाड़ली-लाल की सेवा और स्मरण में व्यस्त रखती है।

अष्टयाम सेवा : कुछ सावधानियाँ

अष्टयाम सेवा के नियम

इस पोस्ट में हम श्री जी की अष्टयाम सेवा पद्धति का विस्तार से विवरण करेंगे। अगर आप मानसिक अष्टयाम सेवा (बस मन में ही प्रभु की सेवा करना) करते हैं या आपने चित्रपट सेवा/ छवि सेवा विराजमान की है, तो आप आप अपनी सुलभता और दिनचर्या के अनुसार जितना हो सके उतना इस दिनचर्या का पालन करें। अगर आप ऑफिस या घर के कार्यों में व्यस्त रहते हैं तो शुरुआत में आप अपनी सुविधा अनुसार कुछ ही सेवाएँ कर सकते हैं या दिए गए समय में भी कुछ बदलाव कर सकते हैं। लेकिन अगर आपके पास ठाकुर जी का विग्रह या श्री जी की नाम सेवा विराजमान है, तो उन्हें अपने बच्चों की तरह दुलार करें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आप उन्हें समय से उठाएँ, सुलाएँ, उन्हें भोग लगाएँ और बाक़ी सारी सेवाएँ जैसे कि इत्र सेवा करें। ऐसा ना करें कि आप स्वयं अच्छे-अच्छे भोजन पदार्थ पाएँ और उन्हें कुछ भी ऐसा-वैसा दे दें या उन्हें भोग लगाना या उठाना-सुलाना या उनका श्रृंगार करना ही भूल जायें।

हमारी उपासना में भाव का बड़ा महत्व है। अगर आपके पास ठाकुर जी की सेवा विराजमान नहीं है और आप यह पूरी अष्ट्याम सेवा मानसिक रूप से करते हैं, तो भी आपको वही फल मिलेगा जो ठाकुर जी की सेवा करना का होता। जिनके पास ठाकुर सेवा विराजमान है, आप भी ठाकुर जी की सेवा भावपूर्ण रूप से करें, केवल साधारण क्रिया समझ के इसे पूरा ना करें।

अष्टयाम सेवा : दिनचर्या की शुरुआत

सबसे पहले प्रातः वेला में उठें। उठने के बाद गुरुदेव भगवान को मानसिक प्रणाम करें। कुछ समय के लिए नाम या गुरु मंत्र का जप करें। फिर कुछ रसिक महापुरुषों का स्मरण करें। आप कह सकते हैं, श्री हरिवंश महाप्रभु की जय, श्री स्वामी हरिदास जू महाराज की जय, श्री हरिराम व्यास जू महाराज की जय, श्री सेवक जू महाराज की जय, श्री नागरीदास जू महाराज की जय, श्री हित ध्रुवदास जू महाराज की जय, आदि। जितने रसिक महापुरुषों के नाम आपको याद हों, उनका स्मरण करें (आप सभी रसिकों के नाम राधा केली कुंज ऐप पर भी देख सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने का लिंक इस पोस्ट के अंत में है)।

इसके बाद अपनी दिनचर्या (शौच, स्नान आदि) करें। स्नान करने के बाद शरीर में वृन्दावन की सूखी रज लगायें और तिलक धारण करें। इसके बाद अपने ठाकुर जी के समीप पहुँचें। सबसे पहले अष्ट सखियों का स्मरण करें (हम हर पहर की उपासना के साथ पद भी यहाँ लिखेंगे। आप इन पदों को गाएँ। अष्टयाम सेवा के सारे पद क्रम सहित राधा केली कुंज ऐप में उपलब्ध हैं)

॥ श्री ललिता जू की जय ॥
॥ श्री विशाखा जू की जय ॥
॥ श्री चंपकलता जू की जय ॥
॥ श्री चित्रा जू की जय ॥
॥ श्री तुंगविद्या जू की जय ॥
॥ श्री इन्दुलेखा जू की जय ॥
॥ श्री रंगदेवी जू की जय ॥
॥ श्री सुदेवी जू की जय ॥
॥ समस्त सहचरी वृंद की जय ॥

इसके बाद हित सजनी जू को नमस्कार करें:

नमो नमो जय श्री हरिवंश ।
रसिक अनन्य वेणु कुल मंडन लीला मान सरोवर हंस ।।
नमो जयति श्रीवृन्दावन सहज माधुरी रास-विलास प्रसंस ।
आगम निगम अगोचर राधे चरण सरोज व्यास अवतंस ।।

श्री सेवक जू महाराज को नमस्कार करें। इनकी कृपा से ही हमें प्रिया-प्रियतम की सेवा में रुचि होती है।

श्री सेवक वन्दना

प्रथम श्री सेवक पद सिर नाऊँ।
करहु कृपा श्रीदामोदर मोपै, श्री हरिवंश-चरण-रति पाऊँ ।।
गुण गंभीर व्यास नंदन (जू) के, तुव परसाद सुजस-रस गाऊँ।
नागरिदास के तुम ही सहायक, रसिक अनन्य नृपति मन भाऊँ ॥

इसके बाद अपने गुरुदेव भगवान को इस पद के द्वारा नमन करें:

नमो नमो गुरु कृपा निधान ।
असरन सरन दया करुना निधि, मंगल रूप हरन अज्ञान ॥
प्रनत जनन हित हरि चरितामृत, अभय करत करवावत पान ।
आगम निगम सार सर्वोपरि, दरसावत आनंद रस थान ॥
नाम सुकृत धन अपनी जीवनि, अति हित मानि देत बर दान ।
वृन्दावन हित बलि पद पावन, भक्ति प्रकासित ज्यौं जग भान ॥

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